तसवीर तेरी दिल मेरा बहला न सकेगी ये तेरी तरह मुझ से तो शर्मा न सकेगी। मैं बात करूँगा तो ये खामोश रहेगी सीने से लगा लूँगा तो ये कुछ न कहेगी आराम वो क्या देगी जो तड़पा न सकेगी। ये आँखें हैं ठहरी हुई चंचल वो निगाहें ये हाथ हैं सहमे हुए और मस्त वो बाहें पर्छाईं तो इंसान के काम आ न सकेगी। इन होंठों को फ़ैय्याज़ मैं कुछ दे न सकूँगा इस ज़ुल्फ़ को मैं हाथ में भी ले न सकूँगा उलझी हुई रातों को ये सुलझा न सकेगी।
लिखे जो ख़त तुझे वो तेरी याद में हज़ारों रंग के नज़ारे बन गए सवेरा जब हुआ तो फूल बन गए जो रात आई तो सितारे बन गए कोई नगमा कहीं गूँजा, कहा दिल ने के तू आई कहीं चटकी कली कोई, मैं ये समझा तू शरमाई कोई ख़ुशबू कहीं बिख़री, लगा ये ज़ुल्फ़ लहराई फ़िज़ा रंगीं अदा रंगीं, ये इठलाना ये शरमाना ये अंगड़ाई ये तनहाई, ये तरसा कर चले जाना बना दे ना कहीं मुझको, जवां जादू ये दीवाना जहाँ तू है वहाँ मैं हूँ, मेरे दिल की तू धड़कन है मुसाफ़िर मैं...
दिल को क्या हो गया ख़ुदा जाने क्यों है ऐसा उदास क्या जाने कह दिया मैं ने हाल-ए-दिल अपना इस को तुम जानो या ख़ुदा जाने जानते जानते ही जानेगा मुझ में क्या है वो अभी क्या जाने तुम न पाओगे सादा दिल मुझसा जो तग़ाफ़ुल को भी हया जाने
उज़्र आने में भी है और बुलाते भी नहीं बाइस-ए-तर्क-ए मुलाक़ात बताते भी नहीं मुंतज़िर हैं दमे रुख़सत के ये मर जाए तो जाएँ फिर ये एहसान के हम छोड़ के जाते भी नहीं सर उठाओ तो सही, आँख मिलाओ तो सही नश्शाए मैं भी नहीं, नींद के माते भी नहीं क्या कहा फिर तो कहो; हम नहीं सुनते तेरी नहीं सुनते तो हम ऐसों को सुनाते भी नहीं ख़ूब परदा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं मुझसे लाग़िर तेरी आँखों में खटकते तो...
शोला था जल-बुझा हूँ हवायें मुझे न दो मैं कब का जा चुका हूँ सदायें मुझे न दो जो ज़हर पी चुका हूँ तुम्हीं ने मुझे दिया अब तुम तो ज़िन्दगी की दुआयें मुझे न दो ऐसा कहीं न हो के पलटकर न आ सकूँ हर बार दूर जा के सदायें मुझे न दो कब मुझ को ऐतेराफ़-ए-मुहब्बत न था "फ़राज़" कब मैं ने ये कहा था सज़ायें मुझे न दो
मेरे बारे में हवाओं से वो कब पूछेगा खाक जब खाक में मिल जाऐगी तब पूछेगा घर बसाने में ये खतरा है कि घर का मालिक रात में देर से आने का सबब पूछेगा अपना गम सबको बताना है तमाशा करना, हाल-ऐ- दिल उसको सुनाएँगे वो जब पूछेगा जब बिछडना भी तो हँसते हुए जाना वरना, हर कोई रुठ जाने का सबब पूछेगा हमने लफजों के जहाँ दाम लगे बेच दिया, शेर पूछेगा हमें अब न अदब पूछेगा
सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं सो उसके शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं सुना है रब्त है उसको ख़राब हालों से सो अपने आप को बरबाद कर के देखते हैं सुना है दर्द की गाहक है चश्म-ए-नाज़ उसकी सो हम भी उसकी गली से गुज़र के देखते हैं सुना है उसको भी है शेर-ओ-शायरी से शगफ़ सो हम भी मोजज़े अपने हुनर के देखते हैं सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं ये बात है तो चलो बात कर के देखते हैं सुना है रात उसे चाँद तकता रहता है सितारे...
आज जाने की ज़िद न करो यूँ ही पहलू में बैठे रहो हाय मर जायेंगे हम तो लुट जायेंगे ऐसी बातें किया न करो तुम्ही सोचो ज़रा, क्यूँ न रोकें तुम्हें जान जाती है जब, उठ के जाते हो तुम तुमको अपनी क़सम जान-ए-जाँ बात इतनी मेरी मान लो आज जाने की... वक़्त की क़ैद में ज़िंदगी है मगर चंद घड़ियाँ यही है जो आज़ाद हैं इनको खोकर मेरी जान-ए-जाँ उम्र भर ना तरसते रहो आज जाने की... कितना मासूम रंगीन है ये समां हुस्न और इश्क़ की आज मेराज है कल...
टकरा ही गई मेरी नज़र उनकी नज़र से धोना ही पङा हाथ मुझे, कल्ब-ओ-जिगर[1] से इज़हार-ए-मोहब्बत न किया बस इसी डर से ऐसा न हो गिर जाऊँ कहीं उनकी नज़र से ऐ ज़ौक़-ए-तलब[2], जोश-ए-जुनूँ ये तो बता दे जाना है कहाँ और हम आए हैं किधर से ऐ अहल-ए-चमन[3], सहन-ए-चमन[4] से कफ़स[5] अच्छा महफूज़ तो हो जाएँगे हम बर्क-ए-शरर[6] से 'फ़य्याज़' अब आया है जुनूँ जोश पे अपना हँसता है ज़माना, मैं गुज़रता हूँ जिधर से शब्दार्थ: 1. कल्ब-ओ-जिगर = दिल और कलेजा ...
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें ढूँढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती ये ख़ज़ाने तुझे मुम्किन[1] है ख़राबों[2] में मिलें तू ख़ुदा है न मेरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा दोनों इंसाँ हैं तो क्यों इतने हिजाबों[3] में मिलें ग़म-ए-दुनिया[4] भी ग़म-ए-यार[5] में शामिल कर लो नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें आज हम दार[6] पे खेंचे गये जिन बातों पर क्या...
केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...
कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...
रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...
हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...
हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...