टकरा ही गई मेरी नज़र उनकी नज़र से
धोना ही पङा हाथ मुझे, कल्ब-ओ-जिगर[1] से
इज़हार-ए-मोहब्बत न किया बस इसी डर से
ऐसा न हो गिर जाऊँ कहीं उनकी नज़र से
ऐ ज़ौक़-ए-तलब[2], जोश-ए-जुनूँ ये तो बता दे
जाना है कहाँ और हम आए हैं किधर से
ऐ अहल-ए-चमन[3], सहन-ए-चमन[4] से कफ़स[5] अच्छा
महफूज़ तो हो जाएँगे हम बर्क-ए-शरर[6] से
'फ़य्याज़' अब आया है जुनूँ जोश पे अपना
हँसता है ज़माना, मैं गुज़रता हूँ जिधर से
शब्दार्थ:
1. कल्ब-ओ-जिगर = दिल और कलेजा
2. ज़ौक़-ए-तलब = खोज/ तलाश का आनंद, कुछ पाने की चाहत का मज़ा, इच्छा का शौक/ रूचि
3. अहल-ए-चमन = बग़ीचे वालों
4. सहन-ए-चमन = बाग़ के भीतर का हरा भरा तख़्ता
5. कफ़स = पिंजरा
6. बर्क-ए-शरर = आसमानी बिजली की चिंगारी
DISCUSSION
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