न तुम मेरे न दिल मेरा न जान-ए-ना-तवाँ मेरी तसव्वुर में भी आ सकतीं नहीं मजबूरियाँ मेरी न तुम आए न चैन आया न मौत आई शब-ए-व'अदा दिल-ए-मुज़्तर था मैं था और थीं बे-ताबियाँ मेरी अबस नादानियों पर आप-अपनी नाज़ करते हैं अभी देखी कहाँ हैं आप ने नादानियाँ मेरी ये मंज़िल ये हसीं मंज़िल जवानी नाम है जिस का यहाँ से और आगे बढ़ना ये उम्र-ए-रवाँ मेरी
तसवीर तेरी दिल मेरा बहला न सकेगी ये तेरी तरह मुझ से तो शर्मा न सकेगी। मैं बात करूँगा तो ये खामोश रहेगी सीने से लगा लूँगा तो ये कुछ न कहेगी आराम वो क्या देगी जो तड़पा न सकेगी। ये आँखें हैं ठहरी हुई चंचल वो निगाहें ये हाथ हैं सहमे हुए और मस्त वो बाहें पर्छाईं तो इंसान के काम आ न सकेगी। इन होंठों को फ़ैय्याज़ मैं कुछ दे न सकूँगा इस ज़ुल्फ़ को मैं हाथ में भी ले न सकूँगा उलझी हुई रातों को ये सुलझा न सकेगी।
बहुत कठिन है डगर पनघट की। कैसे मैं भर लाऊँ मधवा से मटकी मेरे अच्छे निज़ाम पिया। कैसे मैं भर लाऊँ मधवा से मटकी ज़रा बोलो निज़ाम पिया। पनिया भरन को मैं जो गई थी। दौड़ झपट मोरी मटकी पटकी। बहुत कठिन है डगर पनघट की। खुसरो निज़ाम के बल-बल जाइए। लाज राखे मेरे घूँघट पट की। कैसे मैं भर लाऊँ मधवा से मटकी बहुत कठिन है डगर पनघट की।
छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके प्रेम भटी का मदवा पिलाइके मतवारी कर लीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके गोरी गोरी बईयाँ, हरी हरी चूड़ियाँ बईयाँ पकड़ धर लीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके बल बल जाऊं मैं तोरे रंग रजवा अपनी सी रंग दीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके खुसरो निजाम के बल बल जाए मोहे सुहागन कीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके
जो मैं जानती बिसरत हैं सैय्या जो मैं जानती बिसरत हैं सैय्या, घुँघटा में आग लगा देती, मैं लाज के बंधन तोड़ सखी पिया प्यार को अपने मान लेती। इन चूरियों की लाज पिया रखाना, ये तो पहन लई अब उतरत न। मोरा भाग सुहाग तुमई से है मैं तो तुम ही पर जुबना लुटा बैठी। मोरे हार सिंगार की रात गई, पियू संग उमंग की बात गई पियू संत उमंग मेरी आस नई। अब आए न मोरे साँवरिया, मैं तो तन मन उन पर लुटा देती। घर आए न तोरे साँवरिया, मैं तो तन मन उन पर लुटा देती। मोहे...
केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...
कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...
रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...
हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...
हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...