अमीरजादों पे नहीं मिला, शख्स-ए-आम पे तो मिलेगा गरीब हैं शाह जिस सुकून से, वो आवाम पे तो मिलेगा ऐ दिल ले आ कहीं से, मुठ्ठी भर प्यार मुझे माना नहीं धूप सा सस्ता, दिल के दाम पे तो मिलेगा दिल देकर भी मिला ना, जो कहीं चैन हमें गम-ए-मयखाने में, आंसुओं के दाम पे तो मिलेगा ना नींद खोकर पाया, ना अश्क बहाकर अगर मिला वफ़ा ना सही"सपना", उसकी बेवफाई के नाम पे तो मिलेगा
बहुत हो चुका अब हमें इन्साफ मिलना चाहिए खदेड़कर धुंध स्याह, नभ साफ़ मिलना चाहिए भ्रष्ट तंत्र भ्रष्टाचार, भ्रष्ट ही सबके विचार हर एक जन अब इसके, खिलाफ मिलना चाहिए भड़काए नफरत के शोले, सरजमीं पर तुमने बहुत जर्रा -जर्रा हमें इसका अब, आफताब मिलना चाहिए झूठे वादे झूठे इरादे यहाँ, अब नहीं चल पायेंगे बच्चे बच्चे का पूरा, हर ख्वाब मिलना चाहिए उखाड़ फैंको इस तंत्र को स्वतंत्र हो तुम अगर लोकतंत्र का हमें अब, पूरा स्वाद मिलना चाहिए
शाम का स्याह आँचल पल पल सघन होकर ढक रहा उसकी उदासी। गोमती का ये कल कल सुना रहा है हर पल मानो कोई गीत बासी। सृष्टि क्यों दिख रही है कुछ थकित सी! व्यग्र हवा के झोंके बेध रहे हैं तन मन वृक्ष सारे काँपते हैं । नभचरों की चहचहाहट वापसी की है चाहत खुले परों से गगन को नापते हैं। नीड़ में छिपी आँखें निहारती चकित सी! सुघर सुबह के अप्रतिम यौवन का कैसा क्रूर अवसान। तिमिर पक्ष विजयी पस्त है प्रकाश खत्म...
एक बार नदी बोली ! मैँ यूँ ही अविरल बहती जाऊँ । अपने तट पर गाँव शहर बसाऊँ । बिना किये तुमसे कोई आशा । मैँ तृप्त करूँ सबकी अभिलाषा । मेरे जल से तुम फसल उगाओ । लहराती फसल देख मुस्कुराओ । भर जाये अन्न से तुम्हारी झोली ! एक बार नदी बोली ! पर्वत शिखरोँ पर जन्म हुआ मेरा । चाँदी सा उज्जवल था तन मेरा । इठलाती बलखाती मैँ गाती थी । अपने यौवन पर मैँ इतराती थी । अपने जल मेँ मुखड़ा निहार लेती थी । सबको मैँ...
केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...
कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...
रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...
हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...
हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...