अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
ढूँढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती
ये ख़ज़ाने तुझे मुम्किन[1] है ख़राबों[2] में मिलें
तू ख़ुदा है न मेरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यों इतने हिजाबों[3] में मिलें
ग़म-ए-दुनिया[4] भी ग़म-ए-यार[5] में शामिल कर लो
नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें
आज हम दार[6] पे खेंचे गये जिन बातों पर
क्या अजब कल वो ज़माने को निसाबों[7] में मिलें
अब न वो मैं हूँ न तू है न वो माज़ी[8] है "फ़राज़"
जैसे दो शख़्स तमन्ना के सराबों[9] में मिलें
शब्दार्थ:
1. सम्भव
2. मदिरालयों
3. पर्दों
4. सांसारिक दुख
5. मित्र का दुख
6. सूली
7. पाठ्यक्रमों में
8. अतीत्
9. मृगतृष्णा
साभार, https://www.youtube.com/watch?v=SYH4-bKsEGE
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