जीवन

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रोने वाला ही गाता है

रोने वाला ही गाता है!   मधु-विष हैं दोनों जीवन में दोनों मिलते जीवन-क्रम में पर विष पाने पर पहले मधु-मूल्य अरे, कुछ बढ़ जाता है। रोने वाला ही गाता है!   प्राणों की वर्त्तिका बनाकर ओढ़ तिमिर की काली चादर जलने वाला दीपक ही तो जग का तिमिर मिटा पाता है। रोने वाला ही गाता है!   अरे! प्रकृति का यही नियम है रोदन के पीछे गायन है पहले रोया करता है नभ, पीछे इन्द्रधनुष छाता है। रोने वाला ही गाता है!

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ध्वनि

अभी न होगा मेरा अन्त    अभी-अभी ही तो आया है  मेरे वन में मृदुल वसन्त-  अभी न होगा मेरा अन्त    हरे-हरे ये पात,  डालियाँ, कलियाँ कोमल गात!    मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर  फेरूँगा निद्रित कलियों पर  जगा एक प्रत्यूष मनोहर    पुष्प-पुष्प से तन्द्रालस लालसा खींच लूँगा मैं,  अपने नवजीवन का अमृत सहर्ष सींच दूँगा मैं,    द्वार दिखा दूँगा फिर उनको  है मेरे वे जहाँ अनन्त-  अभी न होगा मेरा अन्त।    ...

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मैं कब से ढूँढ़ रहा हूँ

मैं कब से ढूँढ़ रहा हूँ अपने प्रकाश की रेखा तम के तट पर अंकित है निःसीम नियति का लेखा   देने वाले को अब तक मैं देख नहीं पाया हूँ, पर पल भर सुख भी देखा फिर पल भर दुख भी देखा।   किस का आलोक गगन से रवि शशि उडुगन बिखराते? किस अंधकार को लेकर काले बादल घिर आते?   उस चित्रकार को अब तक मैं देख नहीं पाया हूँ, पर देखा है चित्रों को बन-बनकर मिट-मिट जाते।   फिर उठना, फिर गिर पड़ना आशा है, वहीं निराशा...

Bhagwati charan verma 275x153.jpg

मानव

जब किलका को मादकता में हंस देने का वरदान मिला जब सरिता की उन बेसुध सी लहरों को कल कल गान मिला   जब भूले से भरमाए से भर्मरों को रस का पान मिला तब हम मस्तों को हृदय मिला मर मिटने का अरमान मिला।   पत्थर सी इन दो आंखो को जलधारा का उपहार मिला सूनी सी ठंडी सांसों को फिर उच्छवासो का भार मिला   युग युग की उस तन्मयता को कल्पना मिली संचार मिला तब हम पागल से झूम उठे जब रोम रोम को प्यार मिला

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नदी को रास्ता किसने दिखाया?

नदी को रास्ता किसने दिखाया? सिखाया था उसे किसने कि अपनी भावना के वेग को उन्मुक्त बहने दे? कि वह अपने लिए खुद खोज लेगी सिन्धु की गम्भीरता स्वच्छन्द बहकर?   इसे हम पूछते आए युगों से, और सुनते भी युगों से आ रहे उत्तर नदी का। मुझे कोई कभी आया नहीं था राह दिखलाने, बनाया मार्ग मैने आप ही अपना। ढकेला था शिलाओं को, गिरी निर्भिकता से मैं कई ऊँचे प्रपातों से, वनों में, कंदराओं में, भटकती, भूलती मैं फूलती उत्साह...

सावधान, जन-नायक

सावधान, जन-नायक सावधान। यह स्तुति का साँप तुम्हे डस न ले। बचो इन बढ़ी हुई बांहों से  धृतराष्ट्र - मोहपाश  कहीं तुम्हे कस न ले।   सुनते हैं कभी, किसी युग में  पाते ही राम का चरण-स्पर्श  शिला प्राणवती हुई,   देखते हो किन्तु आज  अपने उपास्य के चरणों को छू-छूकर  भक्त उन्हें पत्थर की मूर्ति बना देते हैं।   सावधान, भक्तों की टोली आ रही है  पूजा-द्रव्य लिए! बचो अर्चना से, फूलमाला से, अंधी अनुशंसा की हाला...

आज ही होगा

मनाना चाहता है आज ही?  -तो मान ले  त्यौहार का दिन आज ही होगा!   उमंगें यूँ अकारण ही नहीं उठतीं, न अनदेखे इशारे पर कभी यूँ नाचता मन; खुले से लग रहे हैं द्वार मंदिर के  बढ़ा पग- मूर्ति के शृंगार का दिन आज ही होगा!   न जाने आज क्यों दिल चाहता है- स्वर मिला कर  अनसुने स्वर में किसी की कर उठे जयकार! न जाने क्यूँ  बिना पाए हुए भी दान याचक मन, विकल है व्यक्त करने के लिए आभार!   कोई तो, कहीं तो प्रेरणा...

कौन जाने?

झुक रही है भूमि बाईं ओर, फ़िर भी कौन जाने? नियति की आँखें बचाकर, आज धारा दाहिने बह जाए।   जाने  किस किरण-शर के वरद आघात से निर्वर्ण रेखा-चित्र, बीती रात का, कब रँग उठे।  सहसा मुखर हो मूक क्या कह जाए?   'सम्भव क्या नहीं है आज- लोहित लेखनी प्राची क्षितिज की, कर रही है प्रेरणा,  यह प्रश्न अंकित?    कौन जाने आज ही नि:शेष हों सारे  सँजोये स्वप्न, दिन की सिध्दियों में कौन जाने शेष फिर भी,...

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चिड़ियाँ

पीपल की ऊँची डाली पर बैठी चिड़िया गाती है । तुम्हें ज्ञात अपनी बोली में क्या संदेश सुनाती है ? चिड़िया बैठी प्रेम-प्रीति की रीति हमें सिखलाती है । वह जग के बंदी मानव को मुक्ति-मंत्र बतलाती है । वन में जितने पंछी हैं- खंजन, कपोत, चातक, कोकिल, काक, हंस, शुक, आदि वास करते सब आपस में हिलमिल । सब मिल-जुलकर रहते हैं वे, सब मिल-जुलकर खाते हैं । आसमान ही उनका घर है, जहाँ चाहते, जाते हैं । रहते जहाँ, वहीं वे अपनी दुनिया एक बनाते हैं । दिनभर...

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उस समय भी

जब हमारे साथी-संगी हमसे छूट जाएँ जब हमारे हौसलों को दर्द लूट जाएँ जब हमारे आँसुओं के मेघ टूट जाएँ   उस समय भी रुकना नहीं, चलना चाहिए, टूटे पंख से नदी की धार ने कहा ।   जब दुनिया रात के लिफाफे में बंद हो जब तम में भटक रही फूलों की गंध हो जब भूखे आदमियों औ' कुत्तों में द्वन्द हो   उस समय भी बुझना नहीं जलना चाहिए, बुझते हुए दीप से तूफ़ान ने कहा ।

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