मानव

युग युग की उस तन्मयता को कल्पना मिली संचार मिला ...

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भगवतीचरण वर्मा

जब किलका को मादकता में

हंस देने का वरदान मिला

जब सरिता की उन बेसुध सी

लहरों को कल कल गान मिला

 

जब भूले से भरमाए से

भर्मरों को रस का पान मिला

तब हम मस्तों को हृदय मिला

मर मिटने का अरमान मिला।

 

पत्थर सी इन दो आंखो को

जलधारा का उपहार मिला

सूनी सी ठंडी सांसों को

फिर उच्छवासो का भार मिला

 

युग युग की उस तन्मयता को

कल्पना मिली संचार मिला

तब हम पागल से झूम उठे

जब रोम रोम को प्यार मिला

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