सावधान, जन-नायक

यह स्तुति का साँप तुम्हे डस न ले। बचो इन बढ़ी हुई बांहों से धृतराष्ट्र - मोहपाश कहीं तुम्हे कस न ले ...

सावधान, जन-नायक सावधान।

यह स्तुति का साँप तुम्हे डस न ले।

बचो इन बढ़ी हुई बांहों से 

धृतराष्ट्र - मोहपाश 

कहीं तुम्हे कस न ले।

 

सुनते हैं कभी, किसी युग में 

पाते ही राम का चरण-स्पर्श 

शिला प्राणवती हुई,

 

देखते हो किन्तु आज 

अपने उपास्य के चरणों को छू-छूकर 

भक्त उन्हें पत्थर की मूर्ति बना देते हैं।

 

सावधान, भक्तों की टोली आ रही है 

पूजा-द्रव्य लिए!

बचो अर्चना से, फूलमाला से,

अंधी अनुशंसा की हाला से ,

बचो वंदना की वंचना से, आत्म रति से,

बचो आत्मपोषण से, आत्मा की क्षति से।

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