कौन जाने?

कौन जाने शेष फिर भी, एक नूतन स्वप्न की सम्भावना रह जाए ...

झुक रही है भूमि बाईं ओर, फ़िर भी

कौन जाने?

नियति की आँखें बचाकर,

आज धारा दाहिने बह जाए।

 

जाने 

किस किरण-शर के वरद आघात से

निर्वर्ण रेखा-चित्र, बीती रात का,

कब रँग उठे। 

सहसा मुखर हो

मूक क्या कह जाए?

 

'सम्भव क्या नहीं है आज-

लोहित लेखनी प्राची क्षितिज की,

कर रही है प्रेरणा, 

यह प्रश्न अंकित? 

 

कौन जाने

आज ही नि:शेष हों सारे 

सँजोये स्वप्न,

दिन की सिध्दियों में

कौन जाने

शेष फिर भी,

एक नूतन स्वप्न की सम्भावना रह जाए।

DISCUSSION

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