जीवन

Suryakant tripathi nirala 275x153.jpg

नारायण मिलें हँस अन्त में

याद है वह हरित दिन बढ़ रहा था ज्योति के जब सामने मैं देखता दूर-विस्तृत धूम्र-धूसर पथ भविष्यत का विपुल आलोचनाओं से जटिल तनु-तन्तुओं सा सरल-वक्र, कठोर-कोमल हास सा, गम्य-दुर्गम मुख-बहुल नद-सा भरा। थक गई थी कल्पना जल-यान-दण्ड-स्थित खगी-सी खोजती तट-भूमि सागर-गर्भ में, फिर फिरी थककर उसी दुख-दण्ड पर। पवन-पीड़ित पत्र-सा कम्पन प्रथम वह अब न था। शान्ति थी, सब हट गये बादल विकल वे व्योम के। उस प्रणय के प्रात के है आज तक याद मुझको जो किरण ...

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जीवन का झरना

यह जीवन क्या है? निर्झर है, मस्ती ही इसका पानी है। सुख-दुख के दोनों तीरों से चल रहा राह मनमानी है।    कब फूटा गिरि के अंतर से? किस अंचल से उतरा नीचे?  किस घाटी से बह कर आया समतल में अपने को खींचे?    निर्झर में गति है, जीवन है, वह आगे बढ़ता जाता है!  धुन एक सिर्फ़ है चलने की, अपनी मस्ती में गाता है।    बाधा के रोड़ों से लड़ता, वन के पेड़ों से टकराता,  बढ़ता चट्टानों पर चढ़ता, चलता यौवन से मदमाता।    लहरें उठती हैं,...

Kedarnath mishr prabhat 275x153.jpg

राह में क्षण सृजन का कहीं है पड़ा

रात के खेत का स्वर सितारों-जड़ा बीचियों में छलकती हुई झीलके दीप सौ-सौ लिए चल रही है हवा बांध ऊंचाइयां पंख में राजसी स्वप्न में भी समुद्यत सजग है लवा राह में क्षण सृजन का कहीं है पड़ा व्योम लगता कि लिपिबद्ध तृणभूमि है चांदनी से भरी दूब बजती जहां व्योम लगता कि हस्ताक्षरित पल्लवी पंखवाली परी ओस सजती जहां ओढ़ हलका तिमिर शैली प्रहरी खड़ा

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एक क्षण तुम रुको

जिंदगी को लिए मैं खड़ा ओस में एक क्षण तुम रुको, रोक दो कारवां तुम समय हो, सदा भागते ही रहे आज तक रूप देखा तुम्हारा नहीं टाप पड़ती सुनाई सभी चौंकते किंतु तुमने किसी को पुकारा नहीं चाहता आज पाहुन बना दूं तुम्हें कौन जाने कि कल फिर मिलोगे कहां जिंदगी को लिए मैं जड़ा ओस में एक क्षण तुम रुको, रोक दो कारवां हो लुटेरे बड़े, स्नेह लूटा किए स्नेह में स्नेह कण-भर मिलाया नहीं आग जलती रही तुम रहे झूमते दर्द का एक आंसू बहाया नहीं आज तक जो...

Gopaldasneeraj 275x153.jpg

उसकी अनगिन बूँदों में स्वाति बूँद कौन?

उसकी अनगिन बूँदों में स्वाति बूँद कौन? यह बात स्वयं बादल को भी मालूम नहीं।   किस एक साँस से गाँठ जुड़ी है जीवन की?    हर जीवित से ज्यादा यह प्रश्न पुराना है ।      कौन सी जलन जलकर सूरज बन जाती है?        बुझ कर भी दीपक ने यह भेद न जाना है। परिचय करना तो बस मिट्टी का सुभाव है,    चेतना रही है सदा अपरिचित ही बन कर।      इसलिए हुआ है अक्सर ही ऐसा जग में        जब चला गया मेहमान,गया पहचाना है। खिल-खिल कर हँस-हँस कर झर-झरकर...

Kedarnath mishr prabhat 275x153.jpg

नीरव त्योहार

बजती बीन कहीं कोई जीवन जिसकी झंकार है . हँसी-रुदन में आँक रहा हूँ चित्र काल के छुप के  खेल रहा हूँ आँख मिचौनी साथ आयु के चुपके  यह पतझर,यह ग्रीष्म,मेघऋतु,यह हिम करुण शिशिर है यह त्रिकाल जो घन-सा मन-नभ में आता घिर-घिर है  आँखे दीपक,ह्रदय न जाने किसका चित्राधार है . बजती बीन कहीं कोई जीवन जिसकी झंकार है . अश्रु रश्मियों से रंग-रंगकर धरती के आमुख को  बड़े प्रेम से बाँध रहा हूँ मुस्कानों में सुख-दुःख को   गीतों में भर लेता हूँ सूनापन नील...

Dr ashwaghosh 275x153.jpg

आज भी

वक़्त ने बदली है सिर्फ़ तन की पोशाक मन की ख़बरें तो आज भी छप रही हैं                    पुरानी मशीन पर आज भी मंदिरों में ही जा रहे हैं फूल आज भी उंगलियों को बींध रहे हैं शूल आज भी सड़कों पर जूते चटका रहा है भविष्य आज भी खिड़कियों से दूर है रोशनी आज भी पराजित है सत्य आज भी प्यासी है उत्कंठा आज भी दीवारों को दहला रही है छत आज भी सीटियाँ मार रही है हवा आज भी ज़िन्दगी पर नहीं है भरोसा।

Gopaldasneeraj 275x153.jpg

दूर से दूर तलक एक भी दरख्त न था

दूर से दूर तलक एक भी दरख्त न था| तुम्हारे घर का सफ़र इस क़दर सख्त न था।   इतने मसरूफ़ थे हम जाने के तैयारी में, खड़े थे तुम और तुम्हें देखने का वक्त न था।   मैं जिस की खोज में ख़ुद खो गया था मेले में, कहीं वो मेरा ही एहसास तो कमबख्त न था।   जो ज़ुल्म सह के भी चुप रह गया न ख़ौल उठा, वो और कुछ हो मगर आदमी का रक्त न था।   उन्हीं फ़क़ीरों ने इतिहास बनाया है यहाँ, जिन पे इतिहास को लिखने के लिए वक्त न था।   शराब...

Gopaldasneeraj 275x153.jpg

तमाम उम्र मैं इक अजनबी के घर में रहा

तमाम उम्र मैं इक अजनबी के घर में रहा ।  सफ़र न करते हुए भी किसी सफ़र में रहा । वो जिस्म ही था जो भटका किया ज़माने में,  हृदय तो मेरा हमेशा तेरी डगर में रहा ।  तू ढूँढ़ता था जिसे जा के बृज के गोकुल में,  वो श्याम तो किसी मीरा की चश्मे-तर में रहा ।  वो और ही थे जिन्हें थी ख़बर सितारों की,  मेरा ये देश तो रोटी की ही ख़बर में रहा ।  हज़ारों रत्न थे उस जौहरी की झोली में,  उसे कुछ भी न मिला जो अगर-मगर में रहा ।

फिर क्या होगा उसके बाद

फिर क्या होगा उसके बाद? उत्सुक होकर शिशु ने पूछा, "माँ, क्या होगा उसके बाद?"   रवि से उज्जवल, शशि से सुंदर, नव-किसलय दल से कोमलतर ।  वधू तुम्हारी घर आएगी उस विवाह-उत्सव के बाद ।।'   पलभर मुख पर स्मित-रेखा, खेल गई, फिर माँ ने देखा । उत्सुक हो कह उठा, किन्तु वह फिर क्या होगा उसके बाद?'   फिर नभ के नक्षत्र मनोहर  स्वर्ग-लोक से उतर-उतर कर । तेरे शिशु बनने को मेरे  घर लाएँगे उसके बाद ।।'   मेरे नए...

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कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...

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रंज की जब गुफ्तगू होने लगी

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...

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हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...

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हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...

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