कविताएँ

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दिल को क्या हो गया ख़ुदा जाने

दिल को क्या हो गया ख़ुदा जाने क्यों है ऐसा उदास क्या जाने   कह दिया मैं ने हाल-ए-दिल अपना इस को तुम जानो या ख़ुदा जाने   जानते जानते ही जानेगा मुझ में क्या है वो अभी क्या जाने   तुम न पाओगे सादा दिल मुझसा जो तग़ाफ़ुल को भी हया जाने

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नवीन कल्पना करो

निज राष्ट्र के शरीर के सिंगार के लिए तुम कल्पना करो, नवीन कल्पना करो, तुम कल्पना करो।   अब देश है स्वतंत्र, मेदिनी स्वतंत्र है  मधुमास है स्वतंत्र, चाँदनी स्वतंत्र है  हर दीप है स्वतंत्र, रोशनी स्वतंत्र है  अब शक्ति की ज्वलंत दामिनी स्वतंत्र है  लेकर अनंत शक्तियाँ सद्य समृद्धि की- तुम कामना करो, किशोर कामना करो, तुम कल्पना करो। तन की स्वतंत्रता चरित्र का निखार है  मन की स्वतंत्रता विचार की बहार है  घर की स्वतंत्रता समाज का सिंगार...

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न रवा कहिये न सज़ा कहिये

न रवा कहिये न सज़ा कहिये कहिये कहिये मुझे बुरा कहिये दिल में रखने की बात है ग़म-ए-इश्क़ इस को हर्गिज़ न बर्मला कहिये वो मुझे क़त्ल कर के कहते हैं मानता ही न था ये क्या कहिये आ गई आप को मसिहाई मरने वालो को मर्हबा कहिये होश उड़ने लगे रक़ीबों के "दाग" को और बेवफ़ा कहिये

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कारवां गुज़र गया

स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से, लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से, और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे! नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई, पाँव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई, पात-पात झर गये कि शाख़-शाख़ जल गई, चाह तो निकल सकी न, पर उमर निकल गई, गीत अश्क़ बन गए, छंद हो दफ़न गए, साथ के सभी दिऐ धुआँ-धुआँ पहन गये, और हम झुके-झुके, मोड़ पर रुके-रुके उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे कारवां गुज़र गया, गुबार...

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उक्ति

कुछ न हुआ, न हो मुझे विश्व का सुख, श्री, यदि केवल पास तुम रहो! मेरे नभ के बादल यदि न कटे- चन्द्र रह गया ढका, तिमिर रात को तिरकर यदि न अटे लेश गगन-भास का, रहेंगे अधर हँसते, पथ पर, तुम हाथ यदि गहो। बहु-रस साहित्य विपुल यदि न पढ़ा-- मन्द सबों ने कहा, मेरा काव्यानुमान यदि न बढ़ा-- ज्ञान, जहाँ का रहा, रहे, समझ है मुझमें पूरी, तुम कथा यदि कहो।

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उज्र् आने में भी है और बुलाते भी नहीं

उज़्र आने में भी है और बुलाते भी नहीं  बाइस-ए-तर्क-ए मुलाक़ात बताते भी नहीं मुंतज़िर हैं दमे रुख़सत के ये मर जाए तो जाएँ  फिर ये एहसान के हम छोड़ के जाते भी नहीं सर उठाओ तो सही, आँख मिलाओ तो सही  नश्शाए मैं भी नहीं, नींद के माते भी नहीं क्या कहा फिर तो कहो; हम नहीं सुनते तेरी  नहीं सुनते तो हम ऐसों को सुनाते भी नहीं ख़ूब परदा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं  साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं मुझसे लाग़िर तेरी आँखों में खटकते तो...

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ध्वनि

अभी न होगा मेरा अन्त    अभी-अभी ही तो आया है  मेरे वन में मृदुल वसन्त-  अभी न होगा मेरा अन्त    हरे-हरे ये पात,  डालियाँ, कलियाँ कोमल गात!    मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर  फेरूँगा निद्रित कलियों पर  जगा एक प्रत्यूष मनोहर    पुष्प-पुष्प से तन्द्रालस लालसा खींच लूँगा मैं,  अपने नवजीवन का अमृत सहर्ष सींच दूँगा मैं,    द्वार दिखा दूँगा फिर उनको  है मेरे वे जहाँ अनन्त-  अभी न होगा मेरा अन्त।    ...

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धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ

धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ दिये से मिटेगा न मन का अंधेरा धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ! बहुत बार आई-गई यह दिवाली मगर तम जहां था वहीं पर खड़ा है, बहुत बार लौ जल-बुझी पर अभी तक कफन रात का हर चमन पर पड़ा है, न फिर सूर्य रूठे, न फिर स्वप्न टूटे उषा को जगाओ, निशा को सुलाओ! दिये से मिटेगा न मन का अंधेरा धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ! सृजन शान्ति के वास्ते है जरूरी कि हर द्वार पर रोशनी गीत गाये तभी मुक्ति का यज्ञ यह पूर्ण होगा, कि जब प्यार तलावार...

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जगमग जगमग

हर घर, हर दर, बाहर, भीतर, नीचे ऊपर, हर जगह सुघर, कैसी उजियाली है पग-पग? जगमग जगमग जगमग जगमग! छज्जों में, छत में, आले में, तुलसी के नन्हें थाले में, यह कौन रहा है दृग को ठग? जगमग जगमग जगमग जगमग! पर्वत में, नदियों, नहरों में, प्यारी प्यारी सी लहरों में, तैरते दीप कैसे भग-भग! जगमग जगमग जगमग जगमग! राजा के घर, कंगले के घर, हैं वही दीप सुंदर सुंदर! दीवाली की श्री है पग-पग, जगमग जगमग जगमग जगमग!

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अंधियार ढल कर ही रहेगा

अंधियार ढल कर ही रहेगा  आंधियां चाहें उठाओ, बिजलियां चाहें गिराओ, जल गया है दीप तो अंधियार ढल कर ही रहेगा। रोशनी पूंजी नहीं है, जो तिजोरी में समाये, वह खिलौना भी न, जिसका दाम हर गाहक लगाये, वह पसीने की हंसी है, वह शहीदों की उमर है, जो नया सूरज उगाये जब तड़पकर तिलमिलाये, उग रही लौ को न टोको, ज्योति के रथ को न रोको, यह सुबह का दूत हर तम को निगलकर ही रहेगा। जल गया है दीप तो अंधियार ढल कर ही रहेगा। दीप कैसा हो, कहीं हो, सूर्य का अवतार...

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कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...

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रंज की जब गुफ्तगू होने लगी

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...

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