कविताएँ

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काहे को ब्याहे बिदेस

  काहे को ब्याहे बिदेस, अरे, लखिय बाबुल मोरे  काहे को ब्याहे बिदेस    भैया को दियो बाबुल महले दो-महले  हमको दियो परदेस  अरे, लखिय बाबुल मोरे  काहे को ब्याहे बिदेस   हम तो बाबुल तोरे खूँटे की गैयाँ    जित हाँके हँक जैहें  अरे, लखिय बाबुल मोरे  काहे को ब्याहे बिदेस    हम तो बाबुल तोरे बेले की कलियाँ  घर-घर माँगे हैं जैहें  अरे, लखिय बाबुल मोरे  काहे को ब्याहे बिदेस    कोठे तले से पलकिया जो...

Gopaldasneeraj 275x153.jpg

लिखे जो ख़त तुझे

लिखे जो ख़त तुझे वो तेरी याद में हज़ारों रंग के नज़ारे बन गए सवेरा जब हुआ तो फूल बन गए जो रात आई तो सितारे बन गए कोई नगमा कहीं गूँजा, कहा दिल ने के तू आई कहीं चटकी कली कोई, मैं ये समझा तू शरमाई कोई ख़ुशबू कहीं बिख़री, लगा ये ज़ुल्फ़ लहराई फ़िज़ा रंगीं अदा रंगीं, ये इठलाना ये शरमाना ये अंगड़ाई ये तनहाई, ये तरसा कर चले जाना बना दे ना कहीं मुझको, जवां जादू ये दीवाना जहाँ तू है वहाँ मैं हूँ, मेरे दिल की तू धड़कन है मुसाफ़िर मैं...

Suryakant tripathi nirala 275x153.jpg

जागो फिर एक बार

जागो फिर एक बार! प्यार जगाते हुए हारे सब तारे तुम्हें अरुण-पंख तरुण-किरण खड़ी खोलती है द्वार- जागो फिर एक बार!   आँखे अलियों-सी किस मधु की गलियों में फँसी, बन्द कर पाँखें पी रही हैं मधु मौन अथवा सोयी कमल-कोरकों में?- बन्द हो रहा गुंजार- जागो फिर एक बार!   अस्ताचल चले रवि, शशि-छवि विभावरी में चित्रित हुई है देख यामिनीगन्धा जगी, एकटक चकोर-कोर दर्शन-प्रिय, आशाओं भरी मौन भाषा बहु भावमयी घेर रहा...

Sohanlaldwivedi 275x153.jpg

हिमालय

युग युग से है अपने पथ पर  देखो कैसा खड़ा हिमालय!  डिगता कभी न अपने प्रण से  रहता प्रण पर अड़ा हिमालय!   जो जो भी बाधायें आईं  उन सब से ही लड़ा हिमालय,  इसीलिए तो दुनिया भर में  हुआ सभी से बड़ा हिमालय!   अगर न करता काम कभी कुछ  रहता हरदम पड़ा हिमालय  तो भारत के शीश चमकता  नहीं मुकुट-सा जड़ा हिमालय!   खड़ा हिमालय बता रहा है  डरो न आँधी पानी में,  खड़े रहो अपने पथ पर  सब कठिनाई तूफानी में!   डिगो न अपने प्रण से तो --  सब कुछ...

Sohanlaldwivedi 275x153.jpg

युगावतार गांधी

चल पड़े जिधर दो डग मग में  चल पड़े कोटि पग उसी ओर, पड़ गई जिधर भी एक दृष्टि  गड़ गये कोटि दृग उसी ओर,   जिसके शिर पर निज धरा हाथ  उसके शिर-रक्षक कोटि हाथ,  जिस पर निज मस्तक झुका दिया  झुक गये उसी पर कोटि माथ;  हे कोटिचरण, हे कोटिबाहु!  हे कोटिरूप, हे कोटिनाम!  तुम एकमूर्ति, प्रतिमूर्ति कोटि  हे कोटिमूर्ति, तुमको प्रणाम!   युग बढ़ा तुम्हारी हँसी देख  युग हटा तुम्हारी भृकुटि देख,  तुम अचल मेखला बन भू की  खींचते काल पर अमिट रेख;  तुम...

Gopaldasneeraj 275x153.jpg

जितना कम सामान रहेगा

जितना कम सामान रहेगा उतना सफ़र आसान रहेगा जितनी भारी गठरी होगी उतना तू हैरान रहेगा उससे मिलना नामुमक़िन है जब तक ख़ुद का ध्यान रहेगा हाथ मिलें और दिल न मिलें ऐसे में नुक़सान रहेगा जब तक मन्दिर और मस्जिद हैं मुश्क़िल में इन्सान रहेगा ‘नीरज' तो कल यहाँ न होगा उसका गीत-विधान रहेगा

Gopaldasneeraj 275x153.jpg

प्रेम को न दान दो

प्रेम को न दान दो, न दो दया, प्रेम तो सदैव ही समृद्ध है।   प्रेम है कि ज्योति-स्नेह एक है, प्रेम है कि प्राण-देह एक है, प्रेम है कि विश्व गेह एक है,   प्रेमहीन गति, प्रगति विरुद्ध है। प्रेम तो सदैव ही समृद्ध है॥   प्रेम है इसीलिए दलित दनुज, प्रेम है इसीलिए विजित दनुज, प्रेम है इसीलिए अजित मनुज,   प्रेम के बिना विकास वृद्ध है। प्रेम तो सदैव ही समृद्ध है॥   नित्य व्रत करे नित्य तप करे, नित्य वेद-पाठ...

Gopaldasneeraj 275x153.jpg

रोने वाला ही गाता है

रोने वाला ही गाता है!   मधु-विष हैं दोनों जीवन में दोनों मिलते जीवन-क्रम में पर विष पाने पर पहले मधु-मूल्य अरे, कुछ बढ़ जाता है। रोने वाला ही गाता है!   प्राणों की वर्त्तिका बनाकर ओढ़ तिमिर की काली चादर जलने वाला दीपक ही तो जग का तिमिर मिटा पाता है। रोने वाला ही गाता है!   अरे! प्रकृति का यही नियम है रोदन के पीछे गायन है पहले रोया करता है नभ, पीछे इन्द्रधनुष छाता है। रोने वाला ही गाता है!

Harivanshrai 275x153.jpg

नव वर्ष

वर्ष नव, हर्ष नव, जीवन उत्कर्ष नव। नव उमंग, नव तरंग, जीवन का नव प्रसंग। नवल चाह, नवल राह, जीवन का नव प्रवाह। गीत नवल, प्रीत नवल, जीवन की रीति नवल, जीवन की नीति नवल, जीवन की जीत नवल!

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राम की शक्ति पूजा

रवि हुआ अस्त; ज्योति के पत्र पर लिखा अमर रह गया राम-रावण का अपराजेय समर आज का तीक्ष्ण शर-विधृत-क्षिप्रकर, वेग-प्रखर, शतशेलसम्वरणशील, नील नभगर्ज्जित-स्वर, प्रतिपल - परिवर्तित - व्यूह - भेद कौशल समूह राक्षस - विरुद्ध प्रत्यूह,-क्रुद्ध - कपि विषम हूह, विच्छुरित वह्नि - राजीवनयन - हतलक्ष्य - बाण, लोहितलोचन - रावण मदमोचन - महीयान, राघव-लाघव - रावण - वारण - गत - युग्म - प्रहर, उद्धत - लंकापति मर्दित - कपि - दल-बल - विस्तर, अनिमेष - राम-विश्वजिद्दिव्य -...

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कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...

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रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...

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हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...

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हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...

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