संकोच-भार को सह न सका पुलकित प्राणों का कोमल स्वर कह गये मौन असफलताओं को प्रिय आज काँपते हुए अधर। छिप सकी हृदय की आग कहीं ? छिप सका प्यार का पागलपन ? तुम व्यर्थ लाज की सीमा में हो बाँध रही प्यासा जीवन। तुम करूणा की जयमाल बनो, मैं बनूँ विजय का आलिंगन हम मदमातों की दुनिया में, बस एक प्रेम का हो बन्धन। आकुल नयनों में छलक पड़ा जिस उत्सुकता का चंचल जल कम्पन बन कर कह गई वही तन्मयता की बेसुध हलचल।...
तुम मृगनयनी, तुम पिकबयनी तुम छवि की परिणीता-सी, अपनी बेसुध मादकता में भूली-सी, भयभीता सी । तुम उल्लास भरी आई हो तुम आईं उच्छ्वास भरी, तुम क्या जानो मेरे उर में कितने युग की प्यास भरी । शत-शत मधु के शत-शत सपनों की पुलकित परछाईं-सी, मलय-विचुम्बित तुम ऊषा की अनुरंजित अरुणाई-सी ; तुम अभिमान-भरी आई हो अपना नव-अनुराग लिए, तुम क्या जानो कि मैं तप रहा किस आशा की आग लिए । भरे हुए सूनेपन के...
तू पढ़ती है मेरी पुस्तक, मैं तेरा मुखड़ा पढ़ता हूँ तू चलती है पन्ने-पन्ने, मैं लोचन-लोचन बढ़ता हूँ मै खुली क़लम का जादूगर, तू बंद क़िताब कहानी की मैं हँसी-ख़ुशी का सौदागर, तू रात हसीन जवानी की तू श्याम नयन से देखे तो, मैं नील गगन में उड़ता हूँ तू पढ़ती है मेरी पुस्तक, मैं तेरा मुखड़ा पढ़ता हूँ । तू मन के भाव मिलाती है, मेरी कविता के भावों से मैं अपने भाव मिलाता हूँ, तेरी पलकों की छाँवों से तू मेरी बात पकड़ती है, मैं तेरा मौन पकड़ता हूँ...
कल सहसा यह सन्देश मिला सूने-से युग के बाद मुझे कुछ रोकर, कुछ क्रोधित हो कर तुम कर लेती हो याद मुझे। गिरने की गति में मिलकर गतिमय होकर गतिहीन हुआ एकाकीपन से आया था अब सूनेपन में लीन हुआ। यह ममता का वरदान सुमुखि है अब केवल अपवाद मुझे मैं तो अपने को भूल रहा, तुम कर लेती हो याद मुझे। पुलकित सपनों का क्रय करने मैं आया अपने प्राणों से लेकर अपनी कोमलताओं को मैं टकराया पाषाणों से। मिट-मिटकर...
गीत बनकर मैं मिलूँ यदि रागिनी बन आ सको तुम। सो रहा है दिन, गगन की गोद में रजनी जगी है, झलमलाती नील तारों से जड़ी साड़ी फबी है। गूँथ कर आकाश-गंगा मोतियों के हार लाई, पहिन कर रजनी उसे निज वक्ष पर कुछ मुस्कुराई। चित्र अंकित कर रही धरती सरित के तरल पट पर, समझ यह अनुचित, समीरण ने हिलाया हाथ सत्वर। इस मिलन की रात का प्रिय चित्र बनकर मैं मिलूँ रेखा अगर बन आ सको तुम। जा रही है रात, आया प्रात कलियाँ मुस्कराईं, मधुप का...
तुम्हारी प्रेम-वीणा का अछूता तार मैं भी हूँ मुझे क्यों भूलते वादक विकल झंकार मैं भी हूँ मुझे क्या स्थान-जीवन देवता होगा न चरणों में तुम्हारे द्वार पर विस्मृत पड़ा उपहार मैं भी हूँ बनाया हाथ से जिसको किया बर्बाद पैरों से विफल जग में घरौंदों का क्षणिक संसार मैं भी हूँ खिला देता मुझे मारूत मिटा देतीं मुझे लहरें जगत में खोजता व्याकुल किसी का प्यार मैं भी हूँ कभी मधुमास बन जाओ हृदय के इन निकुंजों में प्रतिक्षा में युगों से जल रही पतझाड़...
जैसे हम हैं वैसे ही रहें, लिये हाथ एक दूसरे का अतिशय सुख के सागर में बहें। मुदें पलक, केवल देखें उर में,- सुनें सब कथा परिमल-सुर में, जो चाहें, कहें वे, कहें। वहाँ एक दृष्टि से अशेष प्रणय देख रहा है जग को निर्भय, दोनों उसकी दृढ़ लहरें सहें।
तुम अपनी हो, जग अपना है किसका किस पर अधिकार प्रिये फिर दुविधा का क्या काम यहाँ इस पार या कि उस पार प्रिये। देखो वियोग की शिशिर रात आँसू का हिमजल छोड़ चली ज्योत्स्ना की वह ठण्डी उसाँस दिन का रक्तांचल छोड़ चली। चलना है सबको छोड़ यहाँ अपने सुख-दुख का भार प्रिये, करना है कर लो आज उसे कल पर किसका अधिकार प्रिये। है आज शीत से झुलस रहे ये कोमल अरुण कपोल प्रिये अभिलाषा की मादकता से कर लो निज छवि का...
मृदुल कल्पना के चल पँखों पर हम तुम दोनों आसीन। भूल जगत के कोलाहल को रच लें अपनी सृष्टि नवीन।। वितत विजन के शांत प्रांत में कल्लोलिनी नदी के तीर। बनी हुई हो वहीं कहीं पर हम दोनों की पर्ण-कुटीर।। कुछ रूखा, सूखा खाकर ही पीतें हों सरिता का जल। पर न कुटिल आक्षेप जगत के करने आवें हमें विकल।। सरल काव्य-सा सुंदर जीवन हम सानंद बिताते हों। तरु-दल की शीतल छाया में चल समीर-सा गाते हों।। सरिता के नीरव प्रवाह-सा...
एक कबूतर चिठ्ठी ले कर पहली—पहली बार उड़ा मौसम एक गुलेल लिये था पट—से नीचे आन गिरा बंजर धरती, झुलसे पौधे, बिखरे काँटे तेज़ हवा हमने घर बैठे—बैठे ही सारा मंज़र देख किया चट्टानों पर खड़ा हुआ तो छाप रह गई पाँवों की सोचो कितना बोझ उठा कर मैं इन राहों से गुज़रा सहने को हो गया इकठ्ठा इतना सारा दुख मन में कहने को हो गया कि देखो अब मैं तुझ को भूल गया धीरे— धीरे भीग रही हैं सारी ईंटें पानी में इनको क्या मालूम कि...
केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...
कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...
रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...
हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...
हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...