कल सहसा यह सन्देश मिला

सुख की तन्मयता तुम्हें मिली, पीड़ा का मिला प्रमाद मुझे फिर एक कसक बनकर अब क्यों तुम कर लेती हो याद मुझे? ...

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भगवतीचरण वर्मा

कल सहसा यह सन्देश मिला

सूने-से युग के बाद मुझे

कुछ रोकर, कुछ क्रोधित हो कर

तुम कर लेती हो याद मुझे।

 

गिरने की गति में मिलकर

गतिमय होकर गतिहीन हुआ

एकाकीपन से आया था

अब सूनेपन में लीन हुआ।

 

यह ममता का वरदान सुमुखि

है अब केवल अपवाद मुझे

मैं तो अपने को भूल रहा,

तुम कर लेती हो याद मुझे।

 

पुलकित सपनों का क्रय करने

मैं आया अपने प्राणों से

लेकर अपनी कोमलताओं को

मैं टकराया पाषाणों से।

 

मिट-मिटकर मैंने देखा है

मिट जानेवाला प्यार यहाँ

सुकुमार भावना को अपनी

बन जाते देखा भार यहाँ।

 

उत्तप्त मरूस्थल बना चुका

विस्मृति का विषम विषाद मुझे

किस आशा से छवि की प्रतिमा!

तुम कर लेती हो याद मुझे?

 

हँस-हँसकर कब से मसल रहा

हूँ मैं अपने विश्वासों को

पागल बनकर मैं फेंक रहा

हूँ कब से उलटे पाँसों को।

 

पशुता से तिल-तिल हार रहा

हूँ मानवता का दाँव अरे

निर्दय व्यंगों में बदल रहे

मेरे ये पल अनुराग-भरे।

 

बन गया एक अस्तित्व अमिट

मिट जाने का अवसाद मुझे

फिर किस अभिलाषा से रूपसि!

तुम कर लेती हो याद मुझे?

 

यह अपना-अपना भाग्य, मिला

अभिशाप मुझे, वरदान तुम्हें

जग की लघुता का ज्ञान मुझे,

अपनी गुरुता का ज्ञान तुम्हें।

 

जिस विधि ने था संयोग रचा,

उसने ही रचा वियोग प्रिये

मुझको रोने का रोग मिला,

तुमको हँसने का भोग प्रिये।

 

सुख की तन्मयता तुम्हें मिली,

पीड़ा का मिला प्रमाद मुझे

फिर एक कसक बनकर अब क्यों

तुम कर लेती हो याद मुझे?


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