सो न सका कल याद तुम्हारी आई सारी रात और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात मेरे बहुत चाहने पर भी नींद न मुझ तक आई ज़हर भरी जादूगरनी-सी मुझको लगी जुन्हाई मेरा मस्तक सहला कर बोली मुझसे पुरवाई दूर कहीं दो आँखें भर-भर आई सारी रात और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात गगन बीच रुक तनिक चन्द्रमा लगा मुझे समझाने मनचाहा मन पा लेना है खेल नहीं दीवाने और उसी क्षण टूटा नभ से एक नखत अनजाने देख जिसे तबियत मेरी घबराई सारी रात और...
मधुर ! बादल, और बादल, और बादल आ रहे हैं और संदेशा तुम्हारा बह उठा है, ला रहे हैं।। गरज में पुस्र्षार्थ उठता, बरस में कस्र्णा उतरती उग उठी हरीतिमा क्षण-क्षण नया श्रृङ्गर करती बूँद-बूँद मचल उठी हैं, कृषक-बाल लुभा रहे हैं।। नेह! संदेशा तुम्हारा बह उठा है, ला रहे हैं।। तड़ित की तह में समायी मूर्ति दृग झपका उठी है तार-तार कि धार तेरी, बोल जी के गा उठी हैं पंथियों से, पंछियों से नीड़ के स्र्ख जा रहे हैं मधुर! बादल, और...
तुम कनक किरन के अंतराल में लुक छिप कर चलते हो क्यों ? नत मस्तक गवर् वहन करते यौवन के घन रस कन झरते हे लाज भरे सौंदर्य बता दो मौन बने रहते हो क्यों? अधरों के मधुर कगारों में कल कल ध्वनि की गुंजारों में मधु सरिता सी यह हंसी तरल अपनी पीते रहते हो क्यों? बेला विभ्रम की बीत चली रजनीगंधा की कली खिली अब सांध्य मलय आकुलित दुकूल कलित हो यों छिपते हो क्यों?
कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी, यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता। तुम मेरी ज़िन्दगी हो, ये सच है, ज़िन्दगी का मगर भरोसा क्या। जी बहुत चाहता है सच बोलें, क्या करें हौसला नहीं होता। वो चाँदनी का बदन खुशबुओं का साया है, बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है। तुम अभी शहर में क्या नए आए हो, रुक गए राह में हादसा देख कर। वो इत्रदान सा लहज़ा मेरे बुजुर्गों का, रची बसी हुई उर्दू ज़बान की ख़ुशबू।
जियो उस प्यार में जो मैं ने तुम्हें दिया है, उस दु:ख में नहीं, जिसे बेझिझक मैं ने पिया है। उस गान में जियो जो मैं ने तुम्हें सुनाया है, उस आह में नहीं, जिसे मैं ने तुम से छिपाया है। उस द्वार से गु जरो जो मैं ने तुम्हारे लिए खोला है, उस अन्धकार से नहीं जिस की गहराई को बार-बार मैं ने तुम्हारी रक्षा की भावना से टटोला है। वह छादन तुम्हारा घर हो जिस मैं असीसों से बुनता हूँ, बुनूँगा; वे...
अपूर्वकुमार बी.ए. पास करके ग्रीष्मावकाश में विश्व की महान नगरी कलकत्ता से अपने गांव को लौट रहा था। मार्ग में छोटी-सी नदी पड़ती है। वह बहुधा बरसात के अन्त में सूख जाया करती है; परन्तु अभी तो सावन मास है। नदी अपने यौवन पर है, गांव की हद और बांस की जड़ों का आलिंगन करती हुई तीव्रता से बहती चली जा रही है। लगातार कई दिनों की घनघोर बरसात के बाद आज तनिक मेघ छटे हैं और नभ पटल पर सूर्य देव के दर्शन हो रहे हैं। नौका पर बैठे हुए अपूर्वकुमार के हृदय में बसी हुई...
मैंने जो गीत तेरे प्यार की ख़ातिर लिक्खे आज उन गीतों को बाज़ार में ले आया हूँ आज दुकान पे नीलाम उठेगा उन का तूने जिन गीतों पे रक्खी थी मुहब्बत की असास आज चाँदी की तराज़ू में तुलेगी हर चीज़ मेरे अफ़कार मेरी शायरी मेरा एहसास जो तेरी ज़ात से मनसूब थे उन गीतों को मुफ़्लिसी जिन्स बनाने पे उतर आई है भूक तेरे रुख़-ए-रन्गीं के फ़सानों के इवज़ चंद आशिया-ए-ज़रूरत की तमन्नाई है देख इस अर्सागह-ए-मेहनत-ओ-सर्माया...
केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...
कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...
रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...
हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...
हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...