कविताएँ

Bhagwati charan verma 275x153.jpg

हम दीवानों की क्या हस्ती

हम दीवानों की क्या हस्ती, आज यहाँ कल वहाँ चले मस्ती का आलम साथ चला, हम धूल उड़ाते जहाँ चले   आए बनकर उल्लास कभी, आँसू बनकर बह चले अभी सब कहते ही रह गए, अरे तुम कैसे आए, कहाँ चले   किस ओर चले? मत ये पूछो, बस चलना है इसलिए चले जग से उसका कुछ लिए चले, जग को अपना कुछ दिए चले   दो बात कहीं, दो बात सुनी, कुछ हँसे और फिर कुछ रोए छक कर सुख-दुःख के घूँटों को, हम एक भाव से पिए चले   हम भिखमंगों की दुनिया में, स्वछन्द लुटाकर...

Gopalsinghnepali 275x153.jpg

भाई - बहन

तू चिंगारी बनकर उड़ री, जाग-जाग मैं ज्वाल बनूँ, तू बन जा हहराती गँगा, मैं झेलम बेहाल बनूँ, आज बसन्ती चोला तेरा, मैं भी सज लूँ लाल बनूँ, तू भगिनी बन क्रान्ति कराली, मैं भाई विकराल बनूँ, यहाँ न कोई राधारानी, वृन्दावन, बंशीवाला, ...तू आँगन की ज्योति बहन री, मैं घर का पहरे वाला । बहन प्रेम का पुतला हूँ मैं, तू ममता की गोद बनी, मेरा जीवन क्रीड़ा-कौतुक तू प्रत्यक्ष प्रमोद भरी, मैं भाई फूलों में भूला, मेरी बहन विनोद बनी, भाई की गति, मति भगिनी...

Ramanath awasthi 275x153.jpg

उस समय भी

जब हमारे साथी-संगी हमसे छूट जाएँ जब हमारे हौसलों को दर्द लूट जाएँ जब हमारे आँसुओं के मेघ टूट जाएँ   उस समय भी रुकना नहीं, चलना चाहिए, टूटे पंख से नदी की धार ने कहा ।   जब दुनिया रात के लिफाफे में बंद हो जब तम में भटक रही फूलों की गंध हो जब भूखे आदमियों औ' कुत्तों में द्वन्द हो   उस समय भी बुझना नहीं जलना चाहिए, बुझते हुए दीप से तूफ़ान ने कहा ।

Ahmad faraz png 275x153.jpg

सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं

सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं  सो उसके शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं सुना है रब्त है उसको ख़राब हालों से  सो अपने आप को बरबाद कर के देखते हैं  सुना है दर्द की गाहक है चश्म-ए-नाज़ उसकी  सो हम भी उसकी गली से गुज़र के देखते हैं  सुना है उसको भी है शेर-ओ-शायरी से शगफ़  सो हम भी मोजज़े अपने हुनर के देखते हैं  सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं  ये बात है तो चलो बात कर के देखते हैं  सुना है रात उसे चाँद तकता रहता है  सितारे...

Gopalsinghnepali 275x153.jpg

बाबुल तुम बगिया के तरुवर

बाबुल तुम बगिया के तरुवर, हम तरुवर की चिड़ियाँ रे  दाना चुगते उड़ जाएँ हम, पिया मिलन की घड़ियाँ रे  उड़ जाएँ तो लौट न आयें, ज्यों मोती की लडियां रे  बाबुल तुम बगिया के तरुवर ……. आँखों से आँसू निकले तो पीछे तके नहीं मुड़के घर की कन्या बन का पंछी, फिरें न डाली से उड़के  बाजी हारी हुई त्रिया की  जनम -जनम सौगात पिया की  बाबुल तुम गूंगे नैना, हम आँसू की फुलझड़ियाँ रे  उड़ जाएँ तो लौट न आएँ ज्यों मोती की लडियाँ रे  हमको सुध न जनम के पहले ,...

गरमियों की शाम

आँधियों ही आँधियों में उड़ गया यह जेठ का जलता हुआ दिन, मुड़ गया किस ओर, कब सूरज सुबह का गदर की दीवार के पीछे, न जाने ।    क्या पता कब दिन ढला, कब शाम हो आई  नही है अब नही है एक भी पिछड़ा सिपाही आँधियों की फौज का बाकी   हमारे बीच अब तो एक पत्ता भी खड़कता है न हिलता है हवा का नाम भी तो हो  हमें अब आँधियों के शोर के बदले  मिली है हब्स की बेचैन ख़ामोशी    न जाने क्या हुआ सहसा, ठिठक कर, ...

Suryakant tripathi nirala 275x153.jpg

गीत

जैसे हम हैं वैसे ही रहें,  लिये हाथ एक दूसरे का  अतिशय सुख के सागर में बहें। मुदें पलक, केवल देखें उर में,- सुनें सब कथा परिमल-सुर में,  जो चाहें, कहें वे, कहें। वहाँ एक दृष्टि से अशेष प्रणय देख रहा है जग को निर्भय,  दोनों उसकी दृढ़ लहरें सहें।

Mahadevi varma 1 275x153.jpg

दीप मेरे जल अकम्पित

दीप मेरे जल अकम्पित, घुल अचंचल! सिन्धु का उच्छवास घन है, तड़ित, तम का विकल मन है, भीति क्या नभ है व्यथा का आँसुओं से सिक्त अंचल!  स्वर-प्रकम्पित कर दिशायें, मीड़, सब भू की शिरायें, गा रहे आंधी-प्रलय तेरे लिये ही आज मंगल   मोह क्या निशि के वरों का, शलभ के झुलसे परों का साथ अक्षय ज्वाल का तू ले चला अनमोल सम्बल!   पथ न भूले, एक पग भी, घर न खोये, लघु विहग भी, स्निग्ध लौ की तूलिका से  आँक सबकी छाँह...

Mahadevi varma 1 275x153.jpg

जो तुम आ जाते एक बार

जो तुम आ जाते एक बार   कितनी करूणा कितने संदेश पथ में बिछ जाते बन पराग गाता प्राणों का तार तार अनुराग भरा उन्माद राग   आँसू लेते वे पथ पखार जो तुम आ जाते एक बार   हँस उठते पल में आर्द्र नयन धुल जाता होठों से विषाद छा जाता जीवन में बसंत लुट जाता चिर संचित विराग   आँखें देतीं सर्वस्व वार जो तुम आ जाते एक बार

Bhagwati charan verma 275x153.jpg

तुम अपनी हो, जग अपना है

तुम अपनी हो, जग अपना है किसका किस पर अधिकार प्रिये फिर दुविधा का क्या काम यहाँ इस पार या कि उस पार प्रिये।   देखो वियोग की शिशिर रात आँसू का हिमजल छोड़ चली ज्योत्स्ना की वह ठण्डी उसाँस दिन का रक्तांचल छोड़ चली।   चलना है सबको छोड़ यहाँ अपने सुख-दुख का भार प्रिये, करना है कर लो आज उसे कल पर किसका अधिकार प्रिये।   है आज शीत से झुलस रहे ये कोमल अरुण कपोल प्रिये अभिलाषा की मादकता से कर लो निज छवि का...

सबसे लोकप्रिय

poet-image

केशर की, कलि की पिचकारी

केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...

poet-image

हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों

कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...

poet-image

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...

poet-image

अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी

हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...

poet-image

भारत महिमा

हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...

ad-image