जल-जल कर उज्ज्वल कर प्रतिपल प्रिय का उत्सव-गेह जीवन तेरे लिये खड़ा है लेकर नीरव स्नेह प्रथम-किरण तू ही अनंत की तू ही अंतिम रश्मि सुकोमल मेरे मन! तू दीपक-सा जल ‘लौ' के कंपन से बनता क्षण में पृथ्वी-आकाश काल-चिता पर खिल उठता जब तेरा ऊर्म्मिल हास सृजन-पुलक की मधुर रागिणी तू ही गीत, तान, लय अविकल मेरे मन! तू दीपक-सा जल
तुम्हारे बिना आरती का दीया यह न बुझ पा रहा है न जल पा रहा है। भटकती निशा कह रही है कि तम में दिए से किरन फूटना ही उचित है, शलभ चीखता पर बिना प्यार के तो विधुर सांस का टूटना ही उचित है, इसी द्वंद्व में रात का यह मुसाफिर न रुक पा रहा है, न चल पा रहा है। तुम्हारे बिना आरती का दिया यह न बुझ पा रहा है, न जल पा रहा है। मिलन ने कहा था कभी मुस्करा कर हँसो फूल बन विश्व-भर को हँसाओ, मगर कह रहा है विरह अब सिसक कर झरा रात-दिन अश्रु के शव...
गोधूली, अब दीप जगा ले! नीलम की निस्मीम पटी पर, तारों के बिखरे सित अक्षर, तम आता हे पाती में, प्रिय का आमन्त्र स्नेह-पगा ले! कुमकुम से सीमान्त सजीला, केशर का आलेपन पीला, किरणों की अंजन-रेखा फीके नयनों में आज लगा ले! इसमें भू के राग घुले हैं, मूक गगन के अश्रु घुले है, रज के रंगों में अपना तू झीना सुरभि-दुकूल रँगा ले! अब असीम में पंख रुक चले, अब सीमा में चरण थक चले, तू निश्वास भेज इनके हित दिन का अन्तिम हास मँगा ले! किरण-नाल पर घन के...
धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ दिये से मिटेगा न मन का अंधेरा धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ! बहुत बार आई-गई यह दिवाली मगर तम जहां था वहीं पर खड़ा है, बहुत बार लौ जल-बुझी पर अभी तक कफन रात का हर चमन पर पड़ा है, न फिर सूर्य रूठे, न फिर स्वप्न टूटे उषा को जगाओ, निशा को सुलाओ! दिये से मिटेगा न मन का अंधेरा धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ! सृजन शान्ति के वास्ते है जरूरी कि हर द्वार पर रोशनी गीत गाये तभी मुक्ति का यज्ञ यह पूर्ण होगा, कि जब प्यार तलावार...
हर घर, हर दर, बाहर, भीतर, नीचे ऊपर, हर जगह सुघर, कैसी उजियाली है पग-पग? जगमग जगमग जगमग जगमग! छज्जों में, छत में, आले में, तुलसी के नन्हें थाले में, यह कौन रहा है दृग को ठग? जगमग जगमग जगमग जगमग! पर्वत में, नदियों, नहरों में, प्यारी प्यारी सी लहरों में, तैरते दीप कैसे भग-भग! जगमग जगमग जगमग जगमग! राजा के घर, कंगले के घर, हैं वही दीप सुंदर सुंदर! दीवाली की श्री है पग-पग, जगमग जगमग जगमग जगमग!
अंधियार ढल कर ही रहेगा आंधियां चाहें उठाओ, बिजलियां चाहें गिराओ, जल गया है दीप तो अंधियार ढल कर ही रहेगा। रोशनी पूंजी नहीं है, जो तिजोरी में समाये, वह खिलौना भी न, जिसका दाम हर गाहक लगाये, वह पसीने की हंसी है, वह शहीदों की उमर है, जो नया सूरज उगाये जब तड़पकर तिलमिलाये, उग रही लौ को न टोको, ज्योति के रथ को न रोको, यह सुबह का दूत हर तम को निगलकर ही रहेगा। जल गया है दीप तो अंधियार ढल कर ही रहेगा। दीप कैसा हो, कहीं हो, सूर्य का अवतार...
दीप मेरे जल अकम्पित, घुल अचंचल! सिन्धु का उच्छवास घन है, तड़ित, तम का विकल मन है, भीति क्या नभ है व्यथा का आँसुओं से सिक्त अंचल! स्वर-प्रकम्पित कर दिशायें, मीड़, सब भू की शिरायें, गा रहे आंधी-प्रलय तेरे लिये ही आज मंगल मोह क्या निशि के वरों का, शलभ के झुलसे परों का साथ अक्षय ज्वाल का तू ले चला अनमोल सम्बल! पथ न भूले, एक पग भी, घर न खोये, लघु विहग भी, स्निग्ध लौ की तूलिका से आँक सबकी छाँह...
प्रिय मेरे गीले नयन बनेंगे आरती! श्वासों में सपने कर गुम्फित, बन्दनवार वेदना- चर्चित, भर दुख से जीवन का घट नित, मूक क्षणों में मधुर भरुंगी भारती! दृग मेरे यह दीपक झिलमिल, भर आँसू का स्नेह रहा ढुल, सुधि तेरी अविराम रही जल, पद-ध्वनि पर आलोक रहूँगी वारती! यह लो प्रिय ! निधियोंमय जीवन, जग की अक्षय स्मृतियों का धन, सुख-सोना करुणा-हीरक-कण, तुमसे जीता, आज तुम्हीं को हारती!
- - इन उत्ताल तरंगों पर सह झंझा के आघात, जलना ही रहस्य है बुझना -है नैसर्गिक बात ... - - किन उपकरणों का दीपक, किसका जलता है तेल? किसकि वर्त्ति, कौन करता इसका ज्वाला से मेल? शून्य काल के पुलिनों पर- जाकर चुपके से मौन, इसे बहा जाता लहरों में वह रहस्यमय कौन? कुहरे सा धुँधला भविष्य है, है अतीत तम घोर ; कौन बता देगा जाता यह किस असीम की ओर? पावस की निशि में जुगनू का- ज्यों आलोक-प्रसार। इस...
केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...
कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...
रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...
हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...
हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...