वर्ष का प्रथम पृथ्वी के उठे उरोज मंजु पर्वत निरुपम किसलयों बँधे, पिक-भ्रमर-गुंज भर मुखर प्राण रच रहे सधे प्रणय के गान, सुनकर सहसा, प्रखर से प्रखर तर हुआ तपन-यौवन सहसा; ऊर्जित, भास्वर पुलकित शत शत व्याकुल कर भर चूमता रसा को बार बार चुम्बित दिनकर क्षोभ से, लोभ से, ममता से, उत्कण्ठा से, प्रणय के नयन की समता से, सर्वस्व दान देकर, लेकर सर्वस्व प्रिया का सुकृत मान। दाब में ग्रीष्म, भीष्म से भीष्म बढ़ रहा ताप, प्रस्वेद, कम्प, ज्यों ज्यों...
वह क्या लक्ष्य जिसे पा कर फिर प्यास रह गयी शेष बताने की, क्या पाया? वह कैसा पथ-दर्शक जो सारा पथ देख स्वयं फिर आया और साथ में--आत्म-तोष से भरा-- मान-चित्र लाया? और वह कैसा राही कहे कि हाँ, ठहरो, चलता हूँ इस दोपहरी में भी, पर इतना बतला दो, कितना पैंडा मार मिलेगी पहली छाया?
यह जीवन क्या है? निर्झर है, मस्ती ही इसका पानी है। सुख-दुख के दोनों तीरों से चल रहा राह मनमानी है। कब फूटा गिरि के अंतर से? किस अंचल से उतरा नीचे? किस घाटी से बह कर आया समतल में अपने को खींचे? निर्झर में गति है, जीवन है, वह आगे बढ़ता जाता है! धुन एक सिर्फ़ है चलने की, अपनी मस्ती में गाता है। बाधा के रोड़ों से लड़ता, वन के पेड़ों से टकराता, बढ़ता चट्टानों पर चढ़ता, चलता यौवन से मदमाता। लहरें उठती हैं,...
अभी न होगा मेरा अन्त अभी-अभी ही तो आया है मेरे वन में मृदुल वसन्त- अभी न होगा मेरा अन्त हरे-हरे ये पात, डालियाँ, कलियाँ कोमल गात! मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर फेरूँगा निद्रित कलियों पर जगा एक प्रत्यूष मनोहर पुष्प-पुष्प से तन्द्रालस लालसा खींच लूँगा मैं, अपने नवजीवन का अमृत सहर्ष सींच दूँगा मैं, द्वार दिखा दूँगा फिर उनको है मेरे वे जहाँ अनन्त- अभी न होगा मेरा अन्त। मेरे जीवन का यह है जब प्रथम चरण, इसमें कहाँ मृत्यु? है जीवन...
उसकी अनगिन बूँदों में स्वाति बूँद कौन? यह बात स्वयं बादल को भी मालूम नहीं। किस एक साँस से गाँठ जुड़ी है जीवन की? हर जीवित से ज्यादा यह प्रश्न पुराना है । कौन सी जलन जलकर सूरज बन जाती है? बुझ कर भी दीपक ने यह भेद न जाना है। परिचय करना तो बस मिट्टी का सुभाव है, चेतना रही है सदा अपरिचित ही बन कर। इसलिए हुआ है अक्सर ही ऐसा जग में जब चला गया मेहमान,गया पहचाना है। खिल-खिल कर हँस-हँस कर झर-झरकर...
बजती बीन कहीं कोई जीवन जिसकी झंकार है . हँसी-रुदन में आँक रहा हूँ चित्र काल के छुप के खेल रहा हूँ आँख मिचौनी साथ आयु के चुपके यह पतझर,यह ग्रीष्म,मेघऋतु,यह हिम करुण शिशिर है यह त्रिकाल जो घन-सा मन-नभ में आता घिर-घिर है आँखे दीपक,ह्रदय न जाने किसका चित्राधार है . बजती बीन कहीं कोई जीवन जिसकी झंकार है . अश्रु रश्मियों से रंग-रंगकर धरती के आमुख को बड़े प्रेम से बाँध रहा हूँ मुस्कानों में सुख-दुःख को गीतों में भर लेता हूँ सूनापन नील...
दूर से दूर तलक एक भी दरख्त न था| तुम्हारे घर का सफ़र इस क़दर सख्त न था। इतने मसरूफ़ थे हम जाने के तैयारी में, खड़े थे तुम और तुम्हें देखने का वक्त न था। मैं जिस की खोज में ख़ुद खो गया था मेले में, कहीं वो मेरा ही एहसास तो कमबख्त न था। जो ज़ुल्म सह के भी चुप रह गया न ख़ौल उठा, वो और कुछ हो मगर आदमी का रक्त न था। उन्हीं फ़क़ीरों ने इतिहास बनाया है यहाँ, जिन पे इतिहास को लिखने के लिए वक्त न था। शराब...
तमाम उम्र मैं इक अजनबी के घर में रहा । सफ़र न करते हुए भी किसी सफ़र में रहा । वो जिस्म ही था जो भटका किया ज़माने में, हृदय तो मेरा हमेशा तेरी डगर में रहा । तू ढूँढ़ता था जिसे जा के बृज के गोकुल में, वो श्याम तो किसी मीरा की चश्मे-तर में रहा । वो और ही थे जिन्हें थी ख़बर सितारों की, मेरा ये देश तो रोटी की ही ख़बर में रहा । हज़ारों रत्न थे उस जौहरी की झोली में, उसे कुछ भी न मिला जो अगर-मगर में रहा ।
फिर क्या होगा उसके बाद? उत्सुक होकर शिशु ने पूछा, "माँ, क्या होगा उसके बाद?" रवि से उज्जवल, शशि से सुंदर, नव-किसलय दल से कोमलतर । वधू तुम्हारी घर आएगी उस विवाह-उत्सव के बाद ।।' पलभर मुख पर स्मित-रेखा, खेल गई, फिर माँ ने देखा । उत्सुक हो कह उठा, किन्तु वह फिर क्या होगा उसके बाद?' फिर नभ के नक्षत्र मनोहर स्वर्ग-लोक से उतर-उतर कर । तेरे शिशु बनने को मेरे घर लाएँगे उसके बाद ।।' मेरे नए...
हंगामा है क्यूँ बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है ना-तजुर्बाकारी से, वाइज़[1] की ये बातें हैं इस रंग को क्या जाने, पूछो तो कभी पी है उस मय से नहीं मतलब, दिल जिस से है बेगाना मक़सूद[2] है उस मय से, दिल ही में जो खिंचती है वां[3] दिल में कि दो सदमे,यां[4] जी में कि सब सह लो उन का भी अजब दिल है, मेरा भी अजब जी है हर ज़र्रा चमकता है, अनवर-ए-इलाही[5] से हर साँस ये कहती है,...
केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...
कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...
रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...
हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...
हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...