वह क्या लक्ष्य
जिसे पा कर फिर प्यास रह गयी शेष
बताने की, क्या पाया?
वह कैसा पथ-दर्शक
जो सारा पथ देख
स्वयं फिर आया
और साथ में--आत्म-तोष से भरा--
मान-चित्र लाया?
और वह कैसा राही
कहे कि हाँ, ठहरो, चलता हूँ
इस दोपहरी में भी, पर इतना बतला दो,
कितना पैंडा मार
मिलेगी पहली छाया?
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