दर्शन

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जितना कम सामान रहेगा

जितना कम सामान रहेगा उतना सफ़र आसान रहेगा जितनी भारी गठरी होगी उतना तू हैरान रहेगा उससे मिलना नामुमक़िन है जब तक ख़ुद का ध्यान रहेगा हाथ मिलें और दिल न मिलें ऐसे में नुक़सान रहेगा जब तक मन्दिर और मस्जिद हैं मुश्क़िल में इन्सान रहेगा ‘नीरज' तो कल यहाँ न होगा उसका गीत-विधान रहेगा

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प्रेम को न दान दो

प्रेम को न दान दो, न दो दया, प्रेम तो सदैव ही समृद्ध है।   प्रेम है कि ज्योति-स्नेह एक है, प्रेम है कि प्राण-देह एक है, प्रेम है कि विश्व गेह एक है,   प्रेमहीन गति, प्रगति विरुद्ध है। प्रेम तो सदैव ही समृद्ध है॥   प्रेम है इसीलिए दलित दनुज, प्रेम है इसीलिए विजित दनुज, प्रेम है इसीलिए अजित मनुज,   प्रेम के बिना विकास वृद्ध है। प्रेम तो सदैव ही समृद्ध है॥   नित्य व्रत करे नित्य तप करे, नित्य वेद-पाठ...

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रोने वाला ही गाता है

रोने वाला ही गाता है!   मधु-विष हैं दोनों जीवन में दोनों मिलते जीवन-क्रम में पर विष पाने पर पहले मधु-मूल्य अरे, कुछ बढ़ जाता है। रोने वाला ही गाता है!   प्राणों की वर्त्तिका बनाकर ओढ़ तिमिर की काली चादर जलने वाला दीपक ही तो जग का तिमिर मिटा पाता है। रोने वाला ही गाता है!   अरे! प्रकृति का यही नियम है रोदन के पीछे गायन है पहले रोया करता है नभ, पीछे इन्द्रधनुष छाता है। रोने वाला ही गाता है!

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धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ

धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ दिये से मिटेगा न मन का अंधेरा धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ! बहुत बार आई-गई यह दिवाली मगर तम जहां था वहीं पर खड़ा है, बहुत बार लौ जल-बुझी पर अभी तक कफन रात का हर चमन पर पड़ा है, न फिर सूर्य रूठे, न फिर स्वप्न टूटे उषा को जगाओ, निशा को सुलाओ! दिये से मिटेगा न मन का अंधेरा धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ! सृजन शान्ति के वास्ते है जरूरी कि हर द्वार पर रोशनी गीत गाये तभी मुक्ति का यज्ञ यह पूर्ण होगा, कि जब प्यार तलावार...

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मैं कब से ढूँढ़ रहा हूँ

मैं कब से ढूँढ़ रहा हूँ अपने प्रकाश की रेखा तम के तट पर अंकित है निःसीम नियति का लेखा   देने वाले को अब तक मैं देख नहीं पाया हूँ, पर पल भर सुख भी देखा फिर पल भर दुख भी देखा।   किस का आलोक गगन से रवि शशि उडुगन बिखराते? किस अंधकार को लेकर काले बादल घिर आते?   उस चित्रकार को अब तक मैं देख नहीं पाया हूँ, पर देखा है चित्रों को बन-बनकर मिट-मिट जाते।   फिर उठना, फिर गिर पड़ना आशा है, वहीं निराशा...

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नदी को रास्ता किसने दिखाया?

नदी को रास्ता किसने दिखाया? सिखाया था उसे किसने कि अपनी भावना के वेग को उन्मुक्त बहने दे? कि वह अपने लिए खुद खोज लेगी सिन्धु की गम्भीरता स्वच्छन्द बहकर?   इसे हम पूछते आए युगों से, और सुनते भी युगों से आ रहे उत्तर नदी का। मुझे कोई कभी आया नहीं था राह दिखलाने, बनाया मार्ग मैने आप ही अपना। ढकेला था शिलाओं को, गिरी निर्भिकता से मैं कई ऊँचे प्रपातों से, वनों में, कंदराओं में, भटकती, भूलती मैं फूलती उत्साह...

आज ही होगा

मनाना चाहता है आज ही?  -तो मान ले  त्यौहार का दिन आज ही होगा!   उमंगें यूँ अकारण ही नहीं उठतीं, न अनदेखे इशारे पर कभी यूँ नाचता मन; खुले से लग रहे हैं द्वार मंदिर के  बढ़ा पग- मूर्ति के शृंगार का दिन आज ही होगा!   न जाने आज क्यों दिल चाहता है- स्वर मिला कर  अनसुने स्वर में किसी की कर उठे जयकार! न जाने क्यूँ  बिना पाए हुए भी दान याचक मन, विकल है व्यक्त करने के लिए आभार!   कोई तो, कहीं तो प्रेरणा...

Dushyant kumar 275x153.jpg

आग जलती रहे

एक तीखी आँच ने इस जन्म का हर पल छुआ, आता हुआ दिन छुआ हाथों से गुजरता कल छुआ हर बीज, अँकुआ, पेड़-पौधा, फूल-पत्ती, फल छुआ जो मुझे छूने चली हर उस हवा का आँचल छुआ ... प्रहर कोई भी नहीं बीता अछूता आग के संपर्क से दिवस, मासों और वर्षों के कड़ाहों में मैं उबलता रहा पानी-सा परे हर तर्क से एक चौथाई उमर यों खौलते बीती बिना अवकाश सुख कहाँ यों भाप बन-बन कर चुका, रीता, भटकता छानता आकाश आह! कैसा कठिन ......

Ramanath awasthi 275x153.jpg

सौ बातों की एक बात है

सौ बातों की एक बात है ।   रोज़ सवेरे रवि आता है दुनिया को दिन दे जाता है लेकिन जब तम इसे निगलता होती जग में किसे विकलता सुख के साथी तो अनगिन हैं लेकिन दुःख के बहुत कठिन हैं   सौ बातो की एक बात है |   अनगिन फूल नित्य खिलते हैं हम इनसे हँस-हँस मिलते हैं लेकिन जब ये मुरझाते हैं तब हम इन तक कब जाते हैं जब तक हममे साँस रहेगी तब तक दुनिया पास रहेगी   सौ बातों की एक बात है |   सुन्दरता पर सब मरते...

Harivanshrai 275x153.jpg

आ रही रवि की सवारी

आ रही रवि की सवारी।   नव-किरण का रथ सजा है, कलि-कुसुम से पथ सजा है, बादलों-से अनुचरों ने स्वर्ण की पोशाक धारी। आ रही रवि की सवारी।   विहग, बंदी और चारण, गा रहे हैं कीर्ति-गायन, छोड़कर मैदान भागी, तारकों की फ़ौज सारी। आ रही रवि की सवारी।   चाहता, उछलूँ विजय कह, पर ठिठकता देखकर यह- रात का राजा खड़ा है, राह में बनकर भिखारी। आ रही रवि की सवारी।

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