एक मुलाकात

मेरे शहर की हर गली संकरी मेरे शहर की हर छत नीची मेरे शहर की हर दीवार चुगली ...

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मैं चुप शान्त और अडोल खड़ी थी

सिर्फ पास बहते समुन्द्र में तूफान था……फिर समुन्द्र को खुदा जाने

क्या ख्याल आया

उसने तूफान की एक पोटली सी बांधी

मेरे हाथों में थमाई

और हंस कर कुछ दूर हो गया

 

हैरान थी….

पर उसका चमत्कार ले लिया

पता था कि इस प्रकार की घटना

कभी सदियों में होती है…..

 

लाखों ख्याल आये

माथे में झिलमिलाये

 

पर खड़ी रह गयी कि उसको उठा कर

अब अपने शहर में कैसे जाऊंगी?

 

मेरे शहर की हर गली संकरी

मेरे शहर की हर छत नीची

मेरे शहर की हर दीवार चुगली

 

सोचा कि अगर तू कहीं मिले

तो समुन्द्र की तरह

इसे छाती पर रख कर

हम दो किनारों की तरह हंस सकते थे

 

और नीची छतों

और संकरी गलियों

के शहर में बस सकते थे….

 

पर सारी दोपहर तुझे ढूंढते बीती

और अपनी आग का मैंने

आप ही घूंट पिया

 

मैं अकेला किनारा

किनारे को गिरा दिया

और जब दिन ढलने को था

समुन्द्र का तूफान

समुन्द्र को लौटा दिया….

 

अब रात घिरने लगी तो तू मिला है

तू भी उदास, चुप, शान्त और अडोल

मैं भी उदास, चुप, शान्त और अडोल

सिर्फ- दूर बहते समुन्द्र में तूफान है…..

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