रात ऊँघ रही है... किसी ने इन्सान की छाती में सेंध लगाई है हर चोरी से भयानक यह सपनों की चोरी है।...
मैं चुप शान्त और अडोल खड़ी थी सिर्फ पास बहते समुन्द्र में तूफान था……फिर समुन्द्र को खुदा जाने क्या...
यह कैसी चुप है कि जिसमें पैरों की आहट शामिल है कोई चुपके से आया है -- चुप से टूटा हुआ -- ...
आज सूरज ने कुछ घबरा कर रोशनी की एक खिड़की खोली बादल की एक खिड़की बंद की और अंधेरे की सीढियां उतर...
गले से गीत टूट गए चर्खे का धागा टूट गया और सखियां-जो अभी अभी यहां थीं जाने कहां कहां गईं......
मैं तुझे फ़िर मिलूंगी कहाँ किस तरह पता नहीं शायद तेरी तख्यिल की चिंगारी बन तेरे केनवास पर उतरुंगी ...
केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...
कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...
रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...
हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...
हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...