कविताएँ

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उसकी अनगिन बूँदों में स्वाति बूँद कौन?

उसकी अनगिन बूँदों में स्वाति बूँद कौन? यह बात स्वयं बादल को भी मालूम नहीं।   किस एक साँस से गाँठ जुड़ी है जीवन की?    हर जीवित से ज्यादा यह प्रश्न पुराना है ।      कौन सी जलन जलकर सूरज बन जाती है?        बुझ कर भी दीपक ने यह भेद न जाना है। परिचय करना तो बस मिट्टी का सुभाव है,    चेतना रही है सदा अपरिचित ही बन कर।      इसलिए हुआ है अक्सर ही ऐसा जग में        जब चला गया मेहमान,गया पहचाना है। खिल-खिल कर हँस-हँस कर झर-झरकर...

Kedarnath mishr prabhat 275x153.jpg

नीरव त्योहार

बजती बीन कहीं कोई जीवन जिसकी झंकार है . हँसी-रुदन में आँक रहा हूँ चित्र काल के छुप के  खेल रहा हूँ आँख मिचौनी साथ आयु के चुपके  यह पतझर,यह ग्रीष्म,मेघऋतु,यह हिम करुण शिशिर है यह त्रिकाल जो घन-सा मन-नभ में आता घिर-घिर है  आँखे दीपक,ह्रदय न जाने किसका चित्राधार है . बजती बीन कहीं कोई जीवन जिसकी झंकार है . अश्रु रश्मियों से रंग-रंगकर धरती के आमुख को  बड़े प्रेम से बाँध रहा हूँ मुस्कानों में सुख-दुःख को   गीतों में भर लेता हूँ सूनापन नील...

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ये जो है हुक़्म मेरे पास न आए कोई

ये जो है हुक़्म मेरे पास न आए कोई इसलिए रूठ रहे हैं कि मनाए कोई ये न पूछो कि ग़मे-हिज्र में कैसी गुज़री  दिल दिखाने का हो तो दिखाए कोई हो चुका ऐश का जलसा तो मुझे ख़त पहुँचा आपकी तरह से मेहमान बुलाए कोई तर्के-बेदाद की तुम दाद न पाओ मुझसे करके एहसान ,न एहसान जताए कोई क्यों वो मय-दाख़िले-दावत ही नहीं ऐ वाइज़ मेहरबानी से बुलाकर जो पिलाए कोई सर्द -मेहरी से ज़माने के हुआ है दिल सर्द रखकर इस चीज़ को क्या आग लगाए कोई आपने दाग़ को मुँह...

Dr ashwaghosh 275x153.jpg

देखा नहीं पहाड़

अब तक हमने देखी बाढ़, लेकिन देखा नहीं पहाड़! सुना वहाँ परियाँ रहती हैं, कल-कल-कल नदियाँ बहती हैं। झरने करते हैं खिलवाड़, लेकिन देखा नहीं पहाड़! और सुना है लोग निराले, घर में नहीं लगाते ताले। हरदम रखते खुले किवाड़, लेकिन देखा नहीं पहाड़! यह भी सुना बर्फ पड़ती है, पेड़ों पर मोती जड़ती है। सब करते हैं उसको लाड़, लेकिन देखा नहीं पहाड़! जीव-जंतु हैं वहाँ अनोखे, चीते, भालू, हरियल तोते। करते रहते सिंह दहाड़, लेकिन देखा नहीं पहाड़!...

Dr ashwaghosh 275x153.jpg

बस्ता मुझसे भारी है

यह कैसी लाचारी है, बस्ता मुझसे भारी है! कंधा रोज भड़कता है, जाने क्या-क्या बकता है, लाइलाज बीमारी है, बस्ता मुझसे भारी है! जब भी मैं पढ़ने जाता, जगह-जगह ठोकर खाता, बस्ता क्या अलमारी है, बस्ता मुझसे भारी है! कान फटे सुनते सहते, मुझे देखकर सब कहते, बालक नहीं, मदारी है, बस्ता मुझसे भारी है!

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आज भी

वक़्त ने बदली है सिर्फ़ तन की पोशाक मन की ख़बरें तो आज भी छप रही हैं                    पुरानी मशीन पर आज भी मंदिरों में ही जा रहे हैं फूल आज भी उंगलियों को बींध रहे हैं शूल आज भी सड़कों पर जूते चटका रहा है भविष्य आज भी खिड़कियों से दूर है रोशनी आज भी पराजित है सत्य आज भी प्यासी है उत्कंठा आज भी दीवारों को दहला रही है छत आज भी सीटियाँ मार रही है हवा आज भी ज़िन्दगी पर नहीं है भरोसा।

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ले चला जान मेरी रूठ के जाना तेरा

ले चला जान मेरी रूठ के जाना तेरा ऐसे आने से तो बेहतर था न आना तेरा अपने दिल को भी बताऊँ न ठिकाना तेरा सब ने जाना जो पता एक ने जाना तेरा तू जो ऐ ज़ुल्फ़ परेशान रहा करती है किस के उजड़े हुए दिल में है ठिकाना तेरा आरज़ू ही न रही सुबहे-वतन[1] की मुझको शामे-गुरबत[2] है अजब वक़्त सुहाना तेरा ये समझकर तुझे ऐ मौत लगा रक्खा है  काम आता है बुरे वक़्त में आना तेरा ऐ दिले शेफ़्ता में आग लगाने वाले  रंग लाया है ये लाखे का जमाना तेरा तू...

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दूर से दूर तलक एक भी दरख्त न था

दूर से दूर तलक एक भी दरख्त न था| तुम्हारे घर का सफ़र इस क़दर सख्त न था।   इतने मसरूफ़ थे हम जाने के तैयारी में, खड़े थे तुम और तुम्हें देखने का वक्त न था।   मैं जिस की खोज में ख़ुद खो गया था मेले में, कहीं वो मेरा ही एहसास तो कमबख्त न था।   जो ज़ुल्म सह के भी चुप रह गया न ख़ौल उठा, वो और कुछ हो मगर आदमी का रक्त न था।   उन्हीं फ़क़ीरों ने इतिहास बनाया है यहाँ, जिन पे इतिहास को लिखने के लिए वक्त न था।   शराब...

Akbar allahabadi 275x153.jpg

कहाँ ले जाऊँ दिल दोनों जहाँ में इसकी मुश्किल है

कहाँ ले जाऊँ दिल दोनों जहाँ में इसकी मुश्क़िल है ।  यहाँ परियों का मजमा है, वहाँ हूरों की महफ़िल है ।  इलाही कैसी-कैसी सूरतें तूने बनाई हैं, हर सूरत कलेजे से लगा लेने के क़ाबिल है।  ये दिल लेते ही शीशे की तरह पत्थर पे दे मारा,  मैं कहता रह गया ज़ालिम मेरा दिल है, मेरा दिल है ।  जो देखा अक्स आईने में अपना बोले झुँझलाकर,  अरे तू कौन है, हट सामने से क्यों मुक़ाबिल है ।  हज़ारों दिल मसल कर पाँवों से झुँझला के फ़रमाया,  लो पहचानो तुम्हारा...

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आया वसंत आया वसंत

आया वसंत आया वसंत छाई जग में शोभा अनंत। सरसों खेतों में उठी फूल बौरें आमों में उठीं झूल बेलों में फूले नये फूल पल में पतझड़ का हुआ अंत आया वसंत आया वसंत। लेकर सुगंध बह रहा पवन हरियाली छाई है बन बन, सुंदर लगता है घर आँगन है आज मधुर सब दिग दिगंत आया वसंत आया वसंत। भौरे गाते हैं नया गान, कोकिला छेड़ती कुहू तान हैं सब जीवों के सुखी प्राण, इस सुख का हो अब नही अंत घर-घर में छाये नित वसंत।

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