कविताएँ

Suryakant tripathi nirala 275x153.jpg

भारती वन्दना

भारती, जय, विजय करे कनक-शस्य-कमल धरे! लंका पदतल-शतदल गर्जितोर्मि सागर-जल धोता शुचि चरण-युगल स्तव कर बहु अर्थ भरे! तरु-तण वन-लता-वसन अंचल में खचित सुमन गंगा ज्योतिर्जल-कण धवल-धार हार लगे! मुकुट शुभ्र हिम-तुषार प्राण प्रणव ओंकार ध्वनित दिशाएँ उदार शतमुख-शतरव-मुखरे!

Saraswati ma wikimedia 275x153.jpg

वीणावादिनी वर दे !

वर दे, वीणावादिनि वर दे ! प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव         भारत में भर दे ! काट अंध-उर के बंधन-स्तर बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर; कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर         जगमग जग कर दे ! नव गति, नव लय, ताल-छंद नव नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव; नव नभ के नव विहग-वृंद को         नव पर, नव स्वर दे ! वर दे, वीणावादिनि वर दे।

Suryakant tripathi nirala 275x153.jpg

जागो फिर एक बार

जागो फिर एक बार ! समर में अमर कर प्राण, गान गाये महासिन्धु-से सिन्धु-नद-तीरवासी ! सैन्धव तुरंगों पर चतुरंग चमू संग; ‘‘सवा-सवा लाख पर एक को चढ़ाऊँगा, गोविन्द सिंह निज नाम जब कहाऊँगा।'' किसने सुनाया यह वीर-जन-मोहन अति दुर्जय संग्राम-राग, फाग का खेला रण बारहों महीनों में ? शेरों की माँद में, आया है आज स्यार- जागो फिर एक बार !   सत् श्री अकाल, भाल-अनल धक-धक कर जला, भस्म हो गया था काल- तीनों...

Img 6522 275x153.jpg

पुष्प की अभिलाषा

चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ, चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ, चाह नहीं, सम्राटों के शव पर, हे हरि, डाला जाऊँ चाह नहीं, देवों के सिर पर, चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ! मुझे तोड़ लेना वनमाली! उस पथ पर देना तुम फेंक, मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जावें वीर अनेक।

Mahadevi varma 1 275x153.jpg

पंथ होने दो अपरिचित

पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला घेर ले छाया अमा बन, आज कज्जल-अश्रुओं में रिमझिमा ले यह घिरा घन, और होंगे नयन सूखे, तिल बुझे औ' पलक रूखे, आर्द्र चितवन में यहाँ शत विद्युतों में दीप खेला और होंगे चरण हारे, अन्य हैं जो लौटते दे शूल को संकल्प सारे; दुखव्रती निर्माण-उन्मद यह अमरता नापते पद; बाँध देंगे अंक-संसृति से तिमिर में स्वर्ण बेला   दूसरी होगी कहानी शून्य में जिसके मिटे स्वर, धूलि में...

2011 05 16 at 17 46 02 275x153.jpg

ले चल वहाँ भुलावा देकर

ले चल वहाँ भुलावा देकर मेरे नाविक ! धीरे-धीरे ।                            जिस निर्जन में सागर लहरी,                         अम्बर के कानों में गहरी,                     निश्छल प्रेम-कथा कहती हो-                    तज कोलाहल की अवनी रे ।                  जहाँ साँझ-सी जीवन-छाया,               ढीली अपनी कोमल काया,            नील नयन से ढुलकाती हो-         ताराओं की पाँति घनी रे ।                              जिस गम्भीर...

Mahadevi varma 1 275x153.jpg

बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ

बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ! नींद थी मेरी अचल निस्पन्द कण कण में, प्रथम जागृति थी जगत के प्रथम स्पन्दन में, प्रलय में मेरा पता पदचिन्‍ह जीवन में, शाप हूँ जो बन गया वरदान बंधन में कूल भी हूँ कूलहीन प्रवाहिनी भी हूँ! बीन भी हूँ मैं... नयन में जिसके जलद वह तृषित चातक हूँ, शलभ जिसके प्राण में वह निठुर दीपक हूँ, फूल को उर में छिपाए विकल बुलबुल हूँ, एक होकर दूर तन से छाँह वह चल हूँ, दूर तुमसे हूँ अखंड सुहागिनी...

Harivanshrai 275x153.jpg

साथी, नया वर्ष आया है

साथी, नया वर्ष आया है! वर्ष पुराना, ले, अब जाता, कुछ प्रसन्न सा, कुछ पछताता दे जी भर आशीष, बहुत ही इससे तूने दुख पाया है! साथी, नया वर्ष आया है! उठ इसका स्वागत करने को, स्नेह बाहुओं में भरने को, नए साल के लिए, देख, यह नई वेदनाएँ लाया है! साथी, नया वर्ष आया है! उठ, ओ पीड़ा के मतवाले! ले ये तीक्ष्ण-तिक्त-कटु प्याले, ऐसे ही प्यालों का गुण तो तूने जीवन भर गाया है! साथी, नया वर्ष आया है!

Makhanlal chaturvedi 275x153.jpg

तुम मिले

तुम मिले, प्राण में रागिनी छा गई! भूलती-सी जवानी नई हो उठी, भूलती-सी कहानी नई हो उठी, जिस दिवस प्राण में नेह बंसी बजी, बालपन की रवानी नई हो उठी। किन्तु रसहीन सारे बरस रसभरे हो गए जब तुम्हारी छटा भा गई। तुम मिले, प्राण में रागिनी छा गई। घनों में मधुर स्वर्ण-रेखा मिली, नयन ने नयन रूप देखा, मिली- पुतलियों में डुबा कर नज़र की कलम नेह के पृष्ठ को चित्र-लेखा मिली; बीतते-से दिवस लौटकर आ गए बालपन ले जवानी संभल आ गई। तुम मिले, प्राण में...

Kedarnath mishr prabhat 275x153.jpg

मेरे मन! तू दीपक-सा जल

जल-जल कर उज्ज्वल कर प्रतिपल प्रिय का उत्सव-गेह जीवन तेरे लिये खड़ा है लेकर नीरव स्नेह प्रथम-किरण तू ही अनंत की तू ही अंतिम रश्मि सुकोमल मेरे मन! तू दीपक-सा जल ‘लौ' के कंपन से बनता क्षण में पृथ्वी-आकाश काल-चिता पर खिल उठता जब तेरा ऊर्म्मिल हास सृजन-पुलक की मधुर रागिणी तू ही गीत, तान, लय अविकल मेरे मन! तू दीपक-सा जल

सबसे लोकप्रिय

poet-image

केशर की, कलि की पिचकारी

केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...

poet-image

हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों

कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...

poet-image

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...

poet-image

अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी

हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...

poet-image

भारत महिमा

हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...

ad-image