सृजन

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राह में क्षण सृजन का कहीं है पड़ा

रात के खेत का स्वर सितारों-जड़ा बीचियों में छलकती हुई झीलके दीप सौ-सौ लिए चल रही है हवा बांध ऊंचाइयां पंख में राजसी स्वप्न में भी समुद्यत सजग है लवा राह में क्षण सृजन का कहीं है पड़ा व्योम लगता कि लिपिबद्ध तृणभूमि है चांदनी से भरी दूब बजती जहां व्योम लगता कि हस्ताक्षरित पल्लवी पंखवाली परी ओस सजती जहां ओढ़ हलका तिमिर शैली प्रहरी खड़ा

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सर्जना के क्षण

एक क्षण भर और  रहने दो मुझे अभिभूत  फिर जहाँ मैने संजो कर और भी सब रखी हैं  ज्योति शिखायें  वहीं तुम भी चली जाना  शांत तेजोरूप!    एक क्षण भर और  लम्बे सर्जना के क्षण कभी भी हो नहीं सकते!  बूँद स्वाती की भले हो  बेधती है मर्म सीपी का उसी निर्मम त्वरा से  वज्र जिससे फोड़ता चट्टान को  भले ही फिर व्यथा के तम में  बरस पर बरस बीतें  एक मुक्तारूप को पकते!

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