रात के खेत का स्वर सितारों-जड़ा
बीचियों में छलकती हुई झीलके
दीप सौ-सौ लिए चल रही है हवा
बांध ऊंचाइयां पंख में राजसी
स्वप्न में भी समुद्यत सजग है लवा
राह में क्षण सृजन का कहीं है पड़ा
व्योम लगता कि लिपिबद्ध तृणभूमि है
चांदनी से भरी दूब बजती जहां
व्योम लगता कि हस्ताक्षरित पल्लवी
पंखवाली परी ओस सजती जहां
ओढ़ हलका तिमिर शैली प्रहरी खड़ा
DISCUSSION
blog comments powered by Disqus