मैं नीर भरी दु:ख की बदली

मैं नीर भरी दु:ख की बदली! स्पंदन में चिर निस्पंद बसा, क्रन्दन में आहत विश्व हंसा ...

Mahadevi varma 1 600x350.jpg

[विस्तृत नभ का कोई कोना,मेरा न कभी अपना होना,परिचय इतना इतिहास यही उमड़ी कल थी मिट आज चली ...]

 

मैं नीर भरी दु:ख की बदली!

 

स्पंदन में चिर निस्पंद बसा,

क्रन्दन में आहत विश्व हंसा,

नयनों में दीपक से जलते,

पलकों में निर्झरिणी मचली!

 

मेरा पग-पग संगीत भरा,

श्वासों में स्वप्न पराग झरा,

नभ के नव रंग बुनते दुकूल,

छाया में मलय बयार पली,

 

मैं क्षितिज भॄकुटि पर घिर धूमिल,

चिंता का भार बनी अविरल,

रज-कण पर जल-कण हो बरसी,

नव जीवन अंकुर बन निकली!

 

पथ को न मलिन करता आना,

पद चिन्ह न दे जाता जाना,

सुधि मेरे आगम की जग में,

सुख की सिहरन बन अंत खिली!

 

विस्तृत नभ का कोई कोना,

मेरा न कभी अपना होना,

परिचय इतना इतिहास यही 

उमड़ी कल थी मिट आज चली!

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