यह संध्या फूली

यह संध्या फूली सजीली ! आज बुलाती हैं विहगों को नीड़ें बिन बोले; रजनी ने नीलम-मन्दिर के वातायन खोले ...

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महादेवी वर्मा

यह संध्या फूली सजीली ! 
आज बुलाती हैं विहगों को नीड़ें बिन बोले; 
रजनी ने नीलम-मन्दिर के वातायन खोले; 

एक सुनहली उर्म्मि क्षितिज से टकराई बिखरी, 
तम ने बढ़कर बीन लिए, वे लघु कण बिन तोले ! 

अनिल ने मधु-मदिरा पी ली ! 

मुरझाया वह कंज बना जो मोती का दोना,
पाया जिसने प्रात उसी को है अब कुछ खोना; 

आज सुनहली रेणु मली सस्मित गोधूली ने; रजनीगंधा आँज रही है नयनों में सोना !

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