उर्वशी

रूप का रसमय निमंत्रण या कि मेरे ही रुधिर की वह्नि मुझको शान्ति से जीने न देती ...

Uravasii 600x350.jpg

उर्वशी

परिशिष्ट

तृतीय अंक

मणिकुट्टिम=अंग्रेजी शब्द, मोजेक के अर्थ में प्रयुक्त
ऋक्षकल्प=नक्षत्र-कल्प
चन्द्रलिंग=जिसका लक्षण या सूचक चन्द्रमा हो ।
बृंहित=बढ़ा हुआ, उस अर्थ में जिसमें आकाश सतत वर्धनशील है। 

चतुर्थ अंक

"और अप्सरा संततियों का पालन कब करती है?"

पुराणों में निम्नलिखित कथाएँ देखिए--
शुकदेवजी का जन्म धृताची से, मत्स्यगन्धा का जन्म
उपरिचर और अन्द्रिका से, प्रमद्वरा का जन्म विश्वावसु
मुनि और मेनका से। राजा आग्नीध्र और पूर्वचिति,
मुनीश्वर कंडु और प्रमलोचा तथा मेनका और विश्वामित्र
की कथाएँ भी। गंगा ने भी अपने आठ पुत्रों में से
किसी का पालन नहीं किया। हाँ मेनका एक ऐसी
अप्सरा अवश्य है, जिसके भीतर मातृत्व कुछ अधिक
सजीव था। दुष्यंत के यहाँ से शकुंतला जब निकाल
दी गई, तब सहसा मेनका आकर उसे उठा ले गई,
ऐसा साक्ष्य कालिदास की कल्पना देती है। 

पंचम अंक

अर्यमा=सूर्य अभिषुत
सोम=पीसा हुआ सोम
आहवनीय=हवन के उपयुक्त
अश्विद्वय=दोनों अश्विनी कुमार
निषण्ण=उपविष्ट
वधूसरा=च्यवन की माता का नाम पुलोमा था।
दैत्य द्वारा पीड़ित होने पर वधूसरा उसके
आसुओं से निकली थी। च्यवन की पहली
पत्नी का नाम आरुषी था। जब प्रसव-काल
में उसका देहांत हो गया, च्यवन तपस्या
में चले गएऔर तपस्या के आसन से उठकर
दुबारा उन्होने प्रेम किया ।
रत्नसानु=स्वर्ग का एक पर्वत, जो सोने का है
शतऋतु=इन्द्र का नाम, इस कारण कि उन्होने
सौ यज्ञ किए थे। कहते हैं, पुरुरवा भी शतऋतु थे
लक्ष्म=चिन्ह या दाग
त्रपा=लज्जा
ऋत=वह श्रृंखला अथवा नियम जो समग्र सृष्टि के
भीतर व्याप्त है और जिसके अधीन समान कारण से
समान फल की उत्पत्ति होती है ।
उदग्र=उत्कंठित
विभावसु=सूर्य
पूण, वरुण, मरुद्गण=वैदिक देवता

DISCUSSION

blog comments powered by Disqus

सबसे लोकप्रिय

poet-image

केशर की, कलि की पिचकारी

केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...

poet-image

हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों

कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...

poet-image

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...

poet-image

अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी

हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...

poet-image

भारत महिमा

हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...

ad-image