चाँद को देखो

लाभ अपना वासना पहचानती है किन्तु मिटना प्रीति केवल जानती है ...

Aarsi prasad singh 600x350.jpg

आरसी प्रसाद सिंह

चाँद को देखो चकोरी के नयन से
माप चाहे जो धरा की हो गगन से।

  मेघ के हर ताल पर
  नव नृत्य करता
  राग जो मल्हार
  अम्बर में उमड़ता

आ रहा इंगित मयूरी के चरण से
चाँद को देखो चकोरी के नयन से।

  दाह कितनी
  दीप के वरदान में है
  आह कितनी
  प्रेम के अभिमान में है

पूछ लो सुकुमार शलभों की जलन से
चाँद को देखो चकोरी के नयन से।

  लाभ अपना
  वासना पहचानती है
  किन्तु मिटना
  प्रीति केवल जानती है

माँग ला रे अमृत जीवन का मरण से
चाँद को देखो चकोरी के नयन से
माप चाहे जो धरा की हो गगन से।

DISCUSSION

blog comments powered by Disqus

सबसे लोकप्रिय

poet-image

केशर की, कलि की पिचकारी

केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...

poet-image

हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों

कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...

poet-image

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...

poet-image

अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी

हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...

poet-image

भारत महिमा

हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...

ad-image