चाँद को देखो चकोरी के नयन से माप चाहे जो धरा की हो गगन से। मेघ के हर ताल पर नव नृत्य करता राग जो मल्हार अम्बर में उमड़ता आ रहा इंगित मयूरी के चरण से चाँद को देखो चकोरी के नयन से। दाह कितनी दीप के वरदान में है आह कितनी प्रेम के अभिमान में है पूछ लो सुकुमार शलभों की जलन से चाँद को देखो चकोरी के नयन से। लाभ अपना वासना पहचानती है किन्तु मिटना प्रीति केवल जानती है माँग ला रे अमृत जीवन का मरण से चाँद...
1. खिड़की खोल जगत को देखो, बाहर भीतर घनावरण है शीतल है वाताश, द्रवित है दिशा, छटा यह निरावरण है मेघ यान चल रहे झूमकर शैल-शिखर पर प्रथम चरण है! बूँद-बूँद बन छहर रहा यह जीवन का जो जन्म-मरण है! जो सागर के अतल-वितल में गर्जन-तर्जन है, हलचल है; वही ज्वार है उठा यहाँ पर शिखर-शिखर में चहल-पहल है! 2. फुहियों में पत्तियाँ नहाई आज पाँव तक भीगे तरुवर, उछल शिखर से शिखर पवन भी झूल रहा तरु की बाँहों पर; निद्रा भंग, दामिनी चौंकी, झलक...
केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...
कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...
रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...
हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...
हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...