ताजमहल

इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले कर हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़ ...

Saahir ludhianavi 600x350.jpg

ताज तेरे लिये इक मज़हर-ए-उल्फ़त[1]ही सही 

तुझको इस वादी-ए-रंगीं[2]से अक़ीदत[3] ही सही

 

मेरी महबूब[4] कहीं और मिला कर मुझ से! 

 

बज़्म-ए-शाही[5] में ग़रीबों का गुज़र क्या मानी 

सब्त[6] जिस राह में हों सतवत-ए-शाही[7] के निशाँ 

उस पे उल्फ़त भरी रूहों का सफ़र क्या मानी 

 

मेरी महबूब! पस-ए-पर्दा-ए-तशहीर-ए-वफ़ा[8] 

 

तू ने सतवत[9] के निशानों को तो देखा होता 

मुर्दा शाहों के मक़ाबिर[10] से बहलने वाली 

अपने तारीक[11] मकानों को तो देखा होता

 

अनगिनत लोगों ने दुनिया में मुहब्बत की है 

कौन कहता है कि सादिक़[12] न थे जज़्बे[13] उनके 

लेकिन उन के लिये तशहीर[14] का सामान नहीं 

क्योंकि वो लोग भी अपनी ही तरह मुफ़लिस[15] थे 

 

ये इमारात-ओ-मक़ाबिर,[16] ये फ़सीलें,[17]ये हिसार[18]

मुतल-क़ुलहुक्म[19] शहंशाहों की अज़मत के सुतूँ[20] 

सीना-ए-दहर[21]के नासूर हैं ,कुहना[22] नासूर

जज़्ब है[23] जिसमें तेरे और मेरे अजदाद[24] का ख़ूँ 

 

मेरी महबूब ! उन्हें भी तो मुहब्बत होगी 

जिनकी सन्नाई[25] ने बख़्शी[26] है इसे शक्ल-ए-जमील[27] 

उन के प्यारों के मक़ाबिर[28] रहे बेनाम-ओ-नमूद[29] 

आज तक उन पे जलाई न किसी ने क़ंदील[30] 

 

ये चमनज़ार[31] ये जमुना का किनारा ये महल 

ये मुनक़्क़श [32]दर-ओ-दीवार, ये महराब ये ताक़ 

 

इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले कर 

हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़

 

मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझ से! 





शब्दार्थ:
1 प्रेम का द्योतक
2 रमणीय स्थान
3 श्रद्धा
4 प्रेयसी
5 बादशाहों के दरबार
6 अंकित
7 राजसी वैभव
8 प्रेम के विज्ञापन के परदे के पीछे
9 राजसी वैभव
10 मक़बरों
11अंधेरे
12पवित्र
13भावनायें
14विज्ञापन
15निर्धन
16भवन और मक़बरे
17परिकोटे
18क़िले
19आदेश देने में स्वतन्त्र
20वैभव के खम्भे
21संसार के वक्षस्थल के

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