चलो इक बार फिर से अज़नबी बन जाएँ हम दोनों न मैं तुमसे कोई उम्मीद रखो दिलनवाज़ी की न तुम मेरी...
मायूस तो हूं वायदे से तेरे, कुछ आस नहीं कुछ आस भी है. मैं अपने ख्यालों के सदके, तू पास नहीं और पास...
मैंने जो गीत तेरे प्यार की ख़ातिर लिक्खे आज उन गीतों को बाज़ार में ले आया हूँ आज दुकान पे नीलाम...
ताज तेरे लिये इक मज़हर-ए-उल्फ़त[1]ही सही तुझको इस वादी-ए-रंगीं[2]से अक़ीदत[3] ही सही मेरी...
जिसे तू कुबूल कर ले वह अदा कहाँ से लाऊँ तेरे दिल को जो लुभाए वह सदा कहाँ से लाऊँ मैं...
केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...
कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...
रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...
हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...
हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...