एक बार नदी बोली !
मैँ यूँ ही अविरल बहती जाऊँ ।
अपने तट पर गाँव शहर बसाऊँ ।
बिना किये तुमसे कोई आशा ।
मैँ तृप्त करूँ सबकी अभिलाषा ।
मेरे जल से तुम फसल उगाओ ।
लहराती फसल देख मुस्कुराओ ।
भर जाये अन्न से तुम्हारी झोली !
एक बार नदी बोली !
पर्वत शिखरोँ पर जन्म हुआ मेरा ।
चाँदी सा उज्जवल था तन मेरा ।
इठलाती बलखाती मैँ गाती थी ।
अपने यौवन पर मैँ इतराती थी ।
अपने जल मेँ मुखड़ा निहार लेती थी ।
सबको मैँ जल का दान देती थी ।
लेकिन तुमने बना दिया मुझे मटमैली !
एक बार नदी बोली !
तुमको पाला मैने शिशु समान ।
तुम मेँ भरा जीवन का ज्ञान ।
तुमने भी अपना फर्ज निभाया ।
माता कहकर मुझको बुलाया ।
माँ की छवि ही गंदी कर दी ।
तुमने मुझमेँ अस्वच्छता भर दी ।
सोचा होगा माँ तो होती है भोली !
एक बार नदी बोली !
DISCUSSION
blog comments powered by Disqus