राज मौर्या

राज मौर्या

इस लेखक की रचनाएँ

शाम का स्याह आँचल

शाम का स्याह आँचल पल पल सघन होकर ढक रहा उसकी उदासी। गोमती का ये कल कल सुना रहा है हर पल ...

एक बार नदी बोली

एक बार नदी बोली ! मैँ यूँ ही अविरल बहती जाऊँ । अपने तट पर गाँव शहर बसाऊँ । बिना किये तुमसे...

सबसे लोकप्रिय

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केशर की, कलि की पिचकारी

केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...

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हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों

कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...

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रंज की जब गुफ्तगू होने लगी

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...

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अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी

हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...

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भारत महिमा

हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...

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