शाम का स्याह आँचल पल पल सघन होकर ढक रहा उसकी उदासी। गोमती का ये कल कल सुना रहा है हर पल ...
एक बार नदी बोली ! मैँ यूँ ही अविरल बहती जाऊँ । अपने तट पर गाँव शहर बसाऊँ । बिना किये तुमसे...
केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...
कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...
रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...
हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...
हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...