वर्तमान की कौन-सी अज्ञात प्रेरणा हमारे अतीत की किसी भूली हुई कथा को सम्पूर्ण मार्मिकता के साथ दोहरा जाती...
[ सीमा ही लघुता का बन्धन है अनादि तू मत घड़ियाँ गिन ...] मधुर-मधुर मेरे दीपक जल! युग-युग प्रतिदिन...
स्वप्न से किसने जगाया? मैं सुरभि हूं। छोड कोमल फूल का घर, ढूंढती हूं निर्झर। पूछती हूं नभ धरा से-...
गोधूली, अब दीप जगा ले! नीलम की निस्मीम पटी पर, तारों के बिखरे सित अक्षर, तम आता हे पाती में, प्रिय...
[ प्यास ही जीवन, सकूँगी तृप्ति में मैं जी कहाँ? ...] रे पपीहे पी कहाँ? खोजता तू...
तुम मुझमें प्रिय, फिर परिचय क्या! तारक में छवि, प्राणों में स्मृति पलकों में नीरव पद की गति...
[मै सुख से चंचल दुख-बोझिल क्षण-क्षण का जीवन जान चली! मिटने को कर निर्माण चली ...] अलि, मैं कण-कण...
दीप मेरे जल अकम्पित, घुल अचंचल! सिन्धु का उच्छवास घन है, तड़ित, तम का विकल मन है, भीति क्या...
जो तुम आ जाते एक बार कितनी करूणा कितने संदेश पथ में बिछ जाते बन पराग गाता प्राणों का तार...
प्रिय मेरे गीले नयन बनेंगे आरती! श्वासों में सपने कर गुम्फित, बन्दनवार वेदना- चर्चित, भर...
केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...
कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...
रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...
हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...
हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...