१. तरवर से इक तिरिया उतरी उसने बहुत रिझाया बाप का उससे नाम जो पूछा आधा नाम बताया आधा नाम पिता पर प्यारा बूझ पहेली मोरी अमीर ख़ुसरो यूँ कहेम अपना नाम नबोली उत्तर—निम्बोली २. फ़ारसी बोली आईना, तुर्की सोच न पाईना हिन्दी बोलते आरसी, आए मुँह देखे जो उसे बताए उत्तर—दर्पण ३. बीसों का सर काट लिया ना मारा ना ख़ून किया उत्तर—नाखून ४. एक गुनी ने ये गुन कीना, हरियल पिंजरे में दे दीना। देखो जादूगर का कमाल, डारे हरा निकाले लाल।। ...
दर्द बन के दिल में आना , कोई तुम से सीख जाए जान-ए-आशिक़ हो के जाना , कोई तुम से सीख जाए हमसुख़न पर रूठ जाना , कोई तुम से सीख जाए रूठ कर फिर मुस्कुराना, कोई तुम से सीख जाए वस्ल की शब[1] चश्म-ए-ख़्वाब-आलूदा[2] के मलते उठे सोते फ़ित्ने[3] को जगाना,कोई तुम से सीख जाए कोई सीखे ख़ाकसारी की रविश[4] तो हम सिखाएँ ख़ाक में दिल को मिलाना,कोई तुम से सीख जाए आते-जाते यूँ तो देखे हैं हज़ारों ख़ुश-ख़राम[5] दिल में आकर दिल से जाना,कोई तुम से सीख...
मेरी छबि उर-उर में ला दो! मेरे नयनों से ये सपने समझा दो! जिस स्वर से भरे नवल नीरद, हुए प्राण पावन गा हुआ हृदय भी गदगद, जिस स्वर-वर्षा ने भर दिये सरित-सर-सागर, मेरी यह धरा धन्य हुई भरा नीलाम्बर, वह स्वर शर्मद उनके कण्ठों में गा दो! जिस गति से नयन-नयन मिलते, खिलते हैं हृदय, कमल के दल-के-दल हिलते, जिस गति की सहज सुमति जगा जन्म-मृत्यु-विरति लाती है जीवन से जीवन की परमारति, चरण-नयन-हृदय-वचन को तुम सिखला दो!
क्या आकाश उतर आया है दूबों के दरबार में? नीली भूमि हरी हो आई इस किरणों के ज्वार में ! क्या देखें तरुओं को उनके फूल लाल अंगारे हैं; बन के विजन भिखारी ने वसुधा में हाथ पसारे हैं। नक्शा उतर गया है, बेलों की अलमस्त जवानी का युद्ध ठना, मोती की लड़ियों से दूबों के पानी का! तुम न नृत्य कर उठो मयूरी, दूबों की हरियाली पर; हंस तरस खाएँ उस मुक्ता बोने वाले माली पर! ऊँचाई यों फिसल पड़ी है नीचाई के प्यार में! क्या आकाश उतर आया है दूबों...
छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके प्रेम भटी का मदवा पिलाइके मतवारी कर लीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके गोरी गोरी बईयाँ, हरी हरी चूड़ियाँ बईयाँ पकड़ धर लीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके बल बल जाऊं मैं तोरे रंग रजवा अपनी सी रंग दीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके खुसरो निजाम के बल बल जाए मोहे सुहागन कीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके
नए साल में प्यार लिखा है तुम भी लिखना प्यार प्रकृति का शिल्प काव्यमय ढाई आखर प्यार सृष्टि पयार्य सभी हम उसके चाकर प्यार शब्द की मयार्दा हित बिना मोल, मीरा-सी-बिकना प्यार समय का कल्प मदिर-सा लोक व्याकरण प्यार सहज संभाव्य दृष्टि का मौन आचरण प्यार अमल है ताल कमल-सी, उसमें दिखना।
वर्ष का प्रथम पृथ्वी के उठे उरोज मंजु पर्वत निरुपम किसलयों बँधे, पिक-भ्रमर-गुंज भर मुखर प्राण रच रहे सधे प्रणय के गान, सुनकर सहसा, प्रखर से प्रखर तर हुआ तपन-यौवन सहसा; ऊर्जित, भास्वर पुलकित शत शत व्याकुल कर भर चूमता रसा को बार बार चुम्बित दिनकर क्षोभ से, लोभ से, ममता से, उत्कण्ठा से, प्रणय के नयन की समता से, सर्वस्व दान देकर, लेकर सर्वस्व प्रिया का सुकृत मान। दाब में ग्रीष्म, भीष्म से भीष्म बढ़ रहा ताप, प्रस्वेद, कम्प, ज्यों ज्यों...
आज बिरज में होरी रे रसिया॥ होरी रे रसिया, बरजोरी रे रसिया॥ आज. कौन के हाथ कनक पिचकारी, कौन के हाथ कमोरी रे रसिया॥ आज. कृष्ण के हाथ कनक पिचकारी, राधा के हाथ कमोरी रे रसिया॥ आज. अपने-अपने घर से निकसीं, कोई श्यामल, कोई गोरी रे रसिया॥ आज. उड़त गुलाल लाल भये बादर, केशर रंग में घोरी रे रसिया॥ आज. बाजत ताल मृदंग झांझ ढप, और नगारे की जोड़ी रे रसिया॥ आज. कै मन लाल गुलाल मँगाई, कै मन केशर घोरी रे रसिया॥ आज. सौ मन लाल गुलाल मगाई,...
जो मैं जानती बिसरत हैं सैय्या जो मैं जानती बिसरत हैं सैय्या, घुँघटा में आग लगा देती, मैं लाज के बंधन तोड़ सखी पिया प्यार को अपने मान लेती। इन चूरियों की लाज पिया रखाना, ये तो पहन लई अब उतरत न। मोरा भाग सुहाग तुमई से है मैं तो तुम ही पर जुबना लुटा बैठी। मोरे हार सिंगार की रात गई, पियू संग उमंग की बात गई पियू संत उमंग मेरी आस नई। अब आए न मोरे साँवरिया, मैं तो तन मन उन पर लुटा देती। घर आए न तोरे साँवरिया, मैं तो तन मन उन पर लुटा देती। मोहे...
खेलूँगी कभी न होली उससे जो नहीं हमजोली । यह आँख नहीं कुछ बोली, यह हुई श्याम की तोली, ऐसी भी रही ठठोली, गाढ़े रेशम की चोली- अपने से अपनी धो लो, अपना घूँघट तुम खोलो, अपनी ही बातें बोलो, मैं बसी पराई टोली । जिनसे होगा कुछ नाता, उनसे रह लेगा माथा, उनसे हैं जोडूँ-जाता, मैं मोल दूसरे मोली
केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...
कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...
रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...
हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...
हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...