भाई, छेड़ो नहीं, मुझे खुलकर रोने दो। यह पत्थर का हृदय आँसुओं से धोने दो। रहो प्रेम से तुम्हीं मौज से मजुं महल में, मुझे दुखों की इसी झोपड़ी में सोने दो। कुछ भी मेरा हृदय न तुमसे कह पावेगा किन्तु फटेगा, फटे बिना क्या रह पावेगा, सिसक-सिसक सानंद आज होगी श्री-पूजा, बहे कुटिल यह सौख्य, दु:ख क्यों बह पावेगा? वारूँ सौ-सौ श्वास एक प्यारी उसांस पर, हारूँ अपने प्राण, दैव, तेरे विलास पर चलो, सखे, तुम चलो, तुम्हारा कार्य चलाओ, लगे दुखों...
स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से, लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से, और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे! नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई, पाँव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई, पात-पात झर गये कि शाख़-शाख़ जल गई, चाह तो निकल सकी न, पर उमर निकल गई, गीत अश्क़ बन गए, छंद हो दफ़न गए, साथ के सभी दिऐ धुआँ-धुआँ पहन गये, और हम झुके-झुके, मोड़ पर रुके-रुके उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे कारवां गुज़र गया, गुबार...
मेरे बारे में हवाओं से वो कब पूछेगा खाक जब खाक में मिल जाऐगी तब पूछेगा घर बसाने में ये खतरा है कि घर का मालिक रात में देर से आने का सबब पूछेगा अपना गम सबको बताना है तमाशा करना, हाल-ऐ- दिल उसको सुनाएँगे वो जब पूछेगा जब बिछडना भी तो हँसते हुए जाना वरना, हर कोई रुठ जाने का सबब पूछेगा हमने लफजों के जहाँ दाम लगे बेच दिया, शेर पूछेगा हमें अब न अदब पूछेगा
एक कबूतर चिठ्ठी ले कर पहली—पहली बार उड़ा मौसम एक गुलेल लिये था पट—से नीचे आन गिरा बंजर धरती, झुलसे पौधे, बिखरे काँटे तेज़ हवा हमने घर बैठे—बैठे ही सारा मंज़र देख किया चट्टानों पर खड़ा हुआ तो छाप रह गई पाँवों की सोचो कितना बोझ उठा कर मैं इन राहों से गुज़रा सहने को हो गया इकठ्ठा इतना सारा दुख मन में कहने को हो गया कि देखो अब मैं तुझ को भूल गया धीरे— धीरे भीग रही हैं सारी ईंटें पानी में इनको क्या मालूम कि...
सो न सका कल याद तुम्हारी आई सारी रात और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात मेरे बहुत चाहने पर भी नींद न मुझ तक आई ज़हर भरी जादूगरनी-सी मुझको लगी जुन्हाई मेरा मस्तक सहला कर बोली मुझसे पुरवाई दूर कहीं दो आँखें भर-भर आई सारी रात और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात गगन बीच रुक तनिक चन्द्रमा लगा मुझे समझाने मनचाहा मन पा लेना है खेल नहीं दीवाने और उसी क्षण टूटा नभ से एक नखत अनजाने देख जिसे तबियत मेरी घबराई सारी रात और...
कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी, यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता। तुम मेरी ज़िन्दगी हो, ये सच है, ज़िन्दगी का मगर भरोसा क्या। जी बहुत चाहता है सच बोलें, क्या करें हौसला नहीं होता। वो चाँदनी का बदन खुशबुओं का साया है, बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है। तुम अभी शहर में क्या नए आए हो, रुक गए राह में हादसा देख कर। वो इत्रदान सा लहज़ा मेरे बुजुर्गों का, रची बसी हुई उर्दू ज़बान की ख़ुशबू।
ये चाँदनी भी जिन को छूते हुए डरती है दुनिया उन्हीं फूलों को पैरों से मसलती है शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है लोबान में चिंगारी जैसे कोई रख दे यूँ याद तेरी शब भर सीने में सुलगती है आ जाता है ख़ुद खींच कर दिल सीने से पटरी पर जब रात की सरहद से इक रेल गुज़रती है आँसू कभी पलकों पर ता देर नहीं रुकते उड़ जाते हैं ये पंछी जब शाख़ लचकती है ख़ुश रंग परिंदों के लौट आने के दिन आये बिछड़े हुए मिलते...
दुआ करो कि ये पौधा सदा हरा ही लगे उदासियों से भी चेहरा खिला-खिला ही लगे ये चाँद तारों का आँचल उसी का हिस्सा है कोई जो दूसरा ओढे तो दूसरा ही लगे नहीं है मेरे मुक़द्दर में रौशनी न सही ये खिड़की खोलो ज़रा सुबह की हवा ही लगे अजीब शख़्स है नाराज़ होके हंसता है मैं चाहता हूँ ख़फ़ा हो तो वो ख़फ़ा ही लगे
चलो इक बार फिर से अज़नबी बन जाएँ हम दोनों न मैं तुमसे कोई उम्मीद रखो दिलनवाज़ी की न तुम मेरी तरफ देखो गलत अंदाज़ नज़रों से न मेरे दिल की धड़कन लडखडाये मेरी बातों से न ज़ाहिर हो हमारी कशमकश का राज़ नज़रों से तुम्हे भी कोई उलझन रोकती है पेशकदमी से मुझे भी लोग कहते हैं की ये जलवे पराये हैं मेरे हमराह भी रुसवाइयां हैं मेरे माजी की तुम्हारे साथ में गुजारी हुई रातों के साये हैं तआरुफ़ रोग बन जाए तो उसको भूलना बेहतर...
मायूस तो हूं वायदे से तेरे, कुछ आस नहीं कुछ आस भी है. मैं अपने ख्यालों के सदके, तू पास नहीं और पास भी है. दिल ने तो खुशी माँगी थी मगर, जो तूने दिया अच्छा ही दिया. जिस गम को तअल्लुक हो तुझसे, वह रास नहीं और रास भी है. पलकों पे लरजते अश्कों में तसवीर झलकती है तेरी. दीदार की प्यासी आँखों को, अब प्यास नहीं और प्यास भी है.
केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...
कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...
रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...
हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...
हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...