जिसे तू कुबूल कर ले वह अदा कहाँ से लाऊँ तेरे दिल को जो लुभाए वह सदा कहाँ से लाऊँ मैं वो फूल हूँ कि जिसको गया हर कोई मसल के मेरी उम्र बह गई है मेरे आँसुओं में ढल के जो बहार बन के बरसे वह घटा कहाँ से लाऊँ तुझे और की तमन्ना, मुझे तेरी आरजू है तेरे दिल में ग़म ही ग़म है मेरे दिल में तू ही तू है जो दिलों को चैन दे दे वह दवा कहाँ से लाऊँ मेरी बेबसी है ज़ाहिर मेरी आहे बेअसर से कभी मौत भी जो मांगी तो न पाई उसके...
केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...
कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...
रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...
हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...
हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...