नेता

सावधान, जन-नायक

सावधान, जन-नायक सावधान। यह स्तुति का साँप तुम्हे डस न ले। बचो इन बढ़ी हुई बांहों से  धृतराष्ट्र - मोहपाश  कहीं तुम्हे कस न ले।   सुनते हैं कभी, किसी युग में  पाते ही राम का चरण-स्पर्श  शिला प्राणवती हुई,   देखते हो किन्तु आज  अपने उपास्य के चरणों को छू-छूकर  भक्त उन्हें पत्थर की मूर्ति बना देते हैं।   सावधान, भक्तों की टोली आ रही है  पूजा-द्रव्य लिए! बचो अर्चना से, फूलमाला से, अंधी अनुशंसा की हाला...

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केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...

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हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों

कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...

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रंज की जब गुफ्तगू होने लगी

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...

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अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी

हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...

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भारत महिमा

हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...

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