जोश

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जागो फिर एक बार

जागो फिर एक बार ! समर में अमर कर प्राण, गान गाये महासिन्धु-से सिन्धु-नद-तीरवासी ! सैन्धव तुरंगों पर चतुरंग चमू संग; ‘‘सवा-सवा लाख पर एक को चढ़ाऊँगा, गोविन्द सिंह निज नाम जब कहाऊँगा।'' किसने सुनाया यह वीर-जन-मोहन अति दुर्जय संग्राम-राग, फाग का खेला रण बारहों महीनों में ? शेरों की माँद में, आया है आज स्यार- जागो फिर एक बार !   सत् श्री अकाल, भाल-अनल धक-धक कर जला, भस्म हो गया था काल- तीनों...

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जागो फिर एक बार

जागो फिर एक बार! प्यार जगाते हुए हारे सब तारे तुम्हें अरुण-पंख तरुण-किरण खड़ी खोलती है द्वार- जागो फिर एक बार!   आँखे अलियों-सी किस मधु की गलियों में फँसी, बन्द कर पाँखें पी रही हैं मधु मौन अथवा सोयी कमल-कोरकों में?- बन्द हो रहा गुंजार- जागो फिर एक बार!   अस्ताचल चले रवि, शशि-छवि विभावरी में चित्रित हुई है देख यामिनीगन्धा जगी, एकटक चकोर-कोर दर्शन-प्रिय, आशाओं भरी मौन भाषा बहु भावमयी घेर रहा...

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वीर तुम बढ़े चलो

वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!   हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहे ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं  वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!   सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो  तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं  वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!   प्रात हो कि रात हो संग हो न साथ हो सूर्य से बढ़े चलो चन्द्र से बढ़े चलो वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!   एक ध्वज लिये हुए एक प्रण किये हुए मातृ भूमि...

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