वे दिन

हमको अपना बना के छोड़े जो हम किसी ऐसे दिल के पास न थे ...

Ramanath awasthi 600x350.jpg

रमानाथ अवस्थी

याद आते हैं फिर बहुत वे दिन

              जो बड़ी मुश्किलों से बीते थे !

 

शाम अक्सर ही ठहर जाती थी

देर तक साथ गुनगुनाती थी !

हम बहुत ख़ुश थे, ख़ुशी के बिन भी

चाँदनी रात भर जगाती थी !

              हमको मालूम है कि हम कैसे

              आग को ओस जैसे पीते थे !

घर के होते हुए भी बेघर थे

रात हो, दिन हो, बस, हमीं भर थे !

डूब जाते थे मेघ भी जिसमें

हम उसी प्यास के समन्दर थे !

              उन दिनों मरने की न थी फ़ुरसत,

              हम तो कुछ इस तरह से जीते थे !

आते-जाते जो लोग मिलते थे

उनके मिलने में फूल खिलते थे !

ज़िन्दगी गंगा जैसी निर्मल थी,

जिसमें हम नाव जैसे चलते थे !

              गंगा की ऊँची-नीची लहरों से

              हम कभी आगे कभी पीछे थे !

कोई मौसम हो हम उदास न थे

तंग रहते थे, पर निराश न थे !

हमको अपना बना के छोड़े जो

हम किसी ऐसे दिल के पास न थे !

              फूल यादों के जल गए कब के

              हमने जो आँसुओं से सींचे थे ।

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