लो दिन बीता लो रात गयी

जैसे होती थी, सुबह हुई, क्यों सोते-सोते सोचा था, होगी प्रात: कुछ बात नई ...

Harivanshrai 600x350.jpg

हरिवंशराय बच्चन

सूरज ढल कर पच्छिम पंहुचा,

डूबा, संध्या आई, छाई,

सौ संध्या सी वह संध्या थी,

क्यों उठते-उठते सोचा था

दिन में होगी कुछ बात नई

लो दिन बीता, लो रात गई

 

धीमे-धीमे तारे निकले,

धीरे-धीरे नभ में फ़ैले,

सौ रजनी सी वह रजनी थी,

क्यों संध्या को यह सोचा था,

निशि में होगी कुछ बात नई,

लो दिन बीता, लो रात गई

 

चिडियाँ चहकी, कलियाँ महकी,

पूरब से फ़िर सूरज निकला,

जैसे होती थी, सुबह हुई,

क्यों सोते-सोते सोचा था,

होगी प्रात: कुछ बात नई,

लो दिन बीता, लो रात गई


DISCUSSION

blog comments powered by Disqus

सबसे लोकप्रिय

poet-image

केशर की, कलि की पिचकारी

केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...

poet-image

हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों

कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...

poet-image

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...

poet-image

अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी

हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...

poet-image

भारत महिमा

हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...

ad-image