जीवन की ही जय हो

जीवन पर सौ बार मरूँ मैं क्या इस धन को गाड़ धरूँ मैं यदि न उचित उपयोग करूँ मैं तो फिर महाप्रलय है ...

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मैथिलीशरण गुप्त

मृषा मृत्यु का भय है

जीवन की ही जय है ।

 

जीव की जड़ जमा रहा है

नित नव वैभव कमा रहा है

यह आत्मा अक्षय है

जीवन की ही जय है।

 

नया जन्म ही जग पाता है

मरण मूढ़-सा रह जाता है

एक बीज सौ उपजाता है

सृष्टा बड़ा सदय है

जीवन की ही जय है।

 

जीवन पर सौ बार मरूँ मैं

क्या इस धन को गाड़ धरूँ मैं

यदि न उचित उपयोग करूँ मैं

तो फिर महाप्रलय है

जीवन की ही जय है।


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