सृजन की थकन भूल जा देवता! अभी तो पड़ी है धरा अधबनी, अभी तो पलक में नहीं खिल सकी नवल कल्पना...
ये अनजान नदी की नावें जादू के-से पाल उड़ाती आती मंथर चाल। नीलम पर किरनों ...
घाट के रस्ते उस बँसवट से इक पीली-सी चिड़िया उसका कुछ अच्छा-सा नाम है! मुझे पुकारे! ...
बरसों के बाद उसी सूने- आँगन में जाकर चुपचाप खड़े होना रिसती-सी यादों से पिरा-पिरा उठना मन...
झुरमुट में दुपहरिया कुम्हलाई खोतों पर अँधियारी छाई पश्चिम की सुनहरी धुंधराई टीलों पर, तालों...
केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...
कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...
रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...
हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...
हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...