तुम्हारी हंसी से धुली घाटियों में तिमिर के प्रलय का नया अर्थ होगा अनल-सा लहकते हुए तरु-शिखा पर किरण चल रही या चरण हैं तुम्हारे सुना है, बहुत बार अनुभव किया है सुरों में तुम्हें रात भू पर उतारे तुम्हारी हंसी से धुले हुए पर्वतों के धड़कते हृदय का नया अर्थ होगा तुम्हारा कहीं एक कण देख पाया तभी से निरंतर पयोनिधि सुलगता कहीं एक क्षण पा गया है तुम्हारा तभी से प्रभंजन अनिर्बन्ध लगता तुम्हारी हंसी से धुली क्यारियों में छलकते प्रणय का...
केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...
कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...
रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...
हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...
हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...