स्वप्न से किसने जगाया? मैं सुरभि हूं। छोड कोमल फूल का घर, ढूंढती हूं निर्झर। पूछती हूं नभ धरा से- क्या नहीं र्त्रतुराज आया? मैं र्त्रतुओं में न्यारा वसंत, मैं अग-जग का प्यारा वसंत। मेरी पगध्वनी सुन जग जागा, कण-कण ने छवि मधुरस मांगा। नव जीवन का संगीत बहा, पुलकों से भर आया दिगंत। मेरी स्वप्नों की निधि अनंत, मैं र्त्रतुओं में न्यारा वसंत।
केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...
कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...
रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...
हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...
हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...