सूफ़ी संगीत

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बहुत कठिन है डगर पनघट की

  बहुत कठिन है डगर पनघट की। कैसे मैं भर लाऊँ मधवा से मटकी मेरे अच्छे निज़ाम पिया। कैसे मैं भर लाऊँ मधवा से मटकी ज़रा बोलो निज़ाम पिया। पनिया भरन को मैं जो गई थी। दौड़ झपट मोरी मटकी पटकी। बहुत कठिन है डगर पनघट की। खुसरो निज़ाम के बल-बल जाइए। लाज राखे मेरे घूँघट पट की। कैसे मैं भर लाऊँ मधवा से मटकी बहुत कठिन है डगर पनघट की।

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छाप तिलक सब छीनी रे

  छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके प्रेम भटी का मदवा पिलाइके मतवारी कर लीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके गोरी गोरी बईयाँ, हरी हरी चूड़ियाँ बईयाँ पकड़ धर लीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके बल बल जाऊं मैं तोरे रंग रजवा अपनी सी रंग दीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके खुसरो निजाम के बल बल जाए मोहे सुहागन कीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके

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ऐ री सखी मोरे पिया घर आए

  ऐ री सखी मोरे पिया घर आए भाग लगे इस आँगन को बल-बल जाऊँ मैं अपने पिया के, चरन लगायो निर्धन को। मैं तो खड़ी थी आस लगाए, मेंहदी कजरा माँग सजाए। देख सूरतिया अपने पिया की, हार गई मैं तन मन को। जिसका पिया संग बीते सावन, उस दुल्हन की रैन सुहागन। जिस सावन में पिया घर नाहि, आग लगे उस सावन को। अपने पिया को मैं किस विध पाऊँ, लाज की मारी मैं तो डूबी डूबी जाऊँ तुम ही जतन करो ऐ री सखी री, मै मन भाऊँ साजन को।

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बहोत रही बाबुल घर दुल्हन

  बहोत रही बाबुल घर दुल्हन, चल तोरे पी ने बुलाई। बहोत खेल खेली सखियन से, अन्त करी लरिकाई। बिदा करन को कुटुम्ब सब आए, सगरे लोग लुगाई। चार कहार मिल डोलिया उठाई, संग परोहत और भाई। चले ही बनेगी होत कहाँ है, नैनन नीर बहाई। अन्त बिदा हो चलि है दुल्हिन, काहू कि कछु न बने आई। मौज-खुसी सब देखत रह गए, मात पिता और भाई। मोरी कौन संग लगन धराई, धन-धन तेरि है खुदाई। बिन मांगे मेरी मंगनी जो कीन्ही, नेह की मिसरी खिलाई। एक के नाम कर दीनी सजनी, पर घर की...

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