जिंदगी को लिए मैं खड़ा ओस में एक क्षण तुम रुको, रोक दो कारवां तुम समय हो, सदा भागते ही रहे आज तक रूप देखा तुम्हारा नहीं टाप पड़ती सुनाई सभी चौंकते किंतु तुमने किसी को पुकारा नहीं चाहता आज पाहुन बना दूं तुम्हें कौन जाने कि कल फिर मिलोगे कहां जिंदगी को लिए मैं जड़ा ओस में एक क्षण तुम रुको, रोक दो कारवां हो लुटेरे बड़े, स्नेह लूटा किए स्नेह में स्नेह कण-भर मिलाया नहीं आग जलती रही तुम रहे झूमते दर्द का एक आंसू बहाया नहीं आज तक जो...
केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...
कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...
रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...
हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...
हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...