चुप-चाप चुप-चाप झरने का स्वर हम में भर जाए, चुप-चाप चुप-चाप शरद की चाँदनी झील की लहरों पे तिर आए, चुप-चाप चुप-चाप जीवन का रहस्य, जो कहा न जाए, हमारी ठहरी आँखों में गहराए, चुप-चाप चुप-चाप हम पुलकित विराट् में डूबे— पर विराट् हम में मिल जाए— चुप-चाप चुप-चाऽऽप…
केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...
कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...
रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...
हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...
हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...