विराट्

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चुपचाप

चुप-चाप चुप-चाप झरने का स्वर             हम में भर जाए,   चुप-चाप चुप-चाप शरद की चाँदनी             झील की लहरों पे तिर आए,   चुप-चाप चुप-चाप जीवन का रहस्य, जो कहा न जाए, हमारी             ठहरी आँखों में गहराए,   चुप-चाप चुप-चाप हम पुलकित विराट् में डूबे—             पर विराट् हम में मिल जाए—   चुप-चाप चुप-चाऽऽप…

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